लताएँ प्रेम करती हैं
काव्य साहित्य | कविता नीतू झा1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
लताएँ झूलना चाहती हैं बादलों पर
ले आना चाहती हैं सूरज से सिंदूर
और फैला देती हैं वह सिंदूर
सारी धरती पर
वे अगाध प्रेम करती हैं आकाश से
लताएँ पेड़ की टहनियों पर
बेसुध हो झूमती हैं
टकराती हैं सावन की तेज़ हवा-पानी से
फिर धरती की धूल से महकतीं
वे प्रेम करती हैं आकाश से
लताओं को पता है
ये जीवन चार दिन का है
वे खोना नहीं चाहती
मरने से पहले ही ज़िंदगी
तभी तो वे निडरता से
प्रेम करती हैं आकाश से
लताएँ जानती हैं
सूरज डूबता नहीं,
छुप जाता है हमारे पीछे
वे जानती हैं प्रेम मरता नहीं,
फिर-फिर आता है
इसलिए वे डरती नहीं किसीसे
प्रेम करती हैं आकाश से
हाँ, लताएँ प्रेम करती हैं आकाश से
अविचल!
अविरत!!
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