प्रार्थना के स्वर
काव्य साहित्य | कविता नीतू झा1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
लगा दिया जाये मेरी ज़ुबान पर ताला
रख दिया जाये ऊँचा से ऊँचा पहाड़ मेरे सीने के ऊपर
चुनवा दिया जाये दीवार के अन्दर
उफ़्फ़ भी नहीं करूँगी
पर मेरी प्रार्थना के स्वर दब नहीं पायेंगे
उभरेंगे बार-बार!
चाहे सात तहें खुदवा के दफ़न
कर दिया जाए मुझे
जैसे हड़प्पा मोहनजोदड़ो की सभ्यता
समा गयी धरती के अंदर
और उसका कोई साक्ष्य भी न रहे
प्रेममयी इकतारा की गुंजाइश
ख़त्म कर दी जाए
और देखते रहना
कहीं नीर ना भरे आँखों की कोरों में
अगर भरें तो फिर बहें नहीं,
बहें तो हरिद्वार ना बने
लाल दुपट्टा ना सींचने लगे पाषाण के शिलालेख!
तुम चाहे लाख जतन करलो
मेरे स्वर को दबा नहीं पाओगे
प्रेम में व्याकुल होकर चटक जाएँगे पेड़ पहाड़, दीवारें . . . सब
नदी की धारा बह निकलेगी
और समन्दर उसे अपने आलिंगन-पाश में
बाँध लेगा
तब मोती, सीपी, शंख . . . लहरों से किनारे को चूमेंगे
और . . . पत्थरों पर फिर फूल खिलेंगे!
मेरी प्रार्थना के स्वर गूँजते रहेंगे आकाश में
और धरती उन्हें सहेजती रहेगी ।
वे उभरेंगे बार-बार!
बार-बार!
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