मुक्ति
काव्य साहित्य | कविता शकुन्तला बहादुर8 Jan 2019
साँस की जंजीर से ही,
प्राण बन्धन में बँधे हैं।
और प्राणों से सदा ही,
मोह के रिश्ते जुड़े हैं।
पलक मुँदते साँस की
जंजीर टूटे।
मोह के ये तार भी सब,
झनझना इक साथ छूटें॥
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