निश्चय
काव्य साहित्य | कविता शकुन्तला बहादुर1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ज़िंदगी जीनी है मुझको,
साँस जब तक चल रही है।
एक भी तो साँस घट सकती नहीं,
एक भी तो साँस बढ़ सकती नहीं।
फिर भला रोकर यहाँ हम क्यों जियें?
आँसुओं से ज़िंदगी की राह क्यों बोझिल करें?
ज़िंदगी के चार दिन
हँसते हुए जीना मुझे।
और मन की सभी ख़ुशियाँ
बाँटनी सब में मुझे॥
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