नापाक दर्द
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’15 Feb 2021
अपनी आत्मा को झिंझोड़ के देखना
वो भी अश्क बहाने लगेगी
मुझे सोच कर।
अगर फिर भी
तुमको सुनाई न दे तो
समझ लेना तुम बहरे हो
कानों से नहीं अपनी सोच से भी।
मेरे बहते हुए अश्कों में
महसूस करना,
मेरी अंतरात्मा के दर्द को।
अगर महसूस न हो
तो समझ लेना
तुम पत्थर हो दिल से ही नहीं
अपने ज़मीर से भी।
कभी तलाश करना
तनहाई में मेरे दर्द को
मेरी चीख़ती आहों को,
अगर दिखाई न दे
तो समझ लेना
तुम अंधे हो आँखों से भी
और जज़्बातों से भी।
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