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टॉलस्टाय की 'अन्ना केरेनिना' : कालजयी उपन्यास और अमर फिल्म

विश्व साहित्य में रूसी उपन्यास साहित्य का अति विशिष्ट स्थान है। उन्नीसवीं शताब्दी में जब भारत में उपन्यास साहित्य का शैशव काल प्रारम्भ हो रहा था तब तक रूसी साहित्य में उपन्यास विधा कलात्मक अभिव्यक्ति के शिखर पर आसीन हो चुकी थी। टॉल्स्टाय, गोर्की, चेखव, दास्तोव्स्की, फ्लाबेयर, जैसे महान कथाकारों की कृतियाँ विश्व चिंतन परंपरा को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक धरातल पर उद्वेलित कर क्लासिकल साहित्य का दर्जा हासिल कर चुकी थीं। रूसी भाषा में एक से एक बेजोड़ सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि पर वृहदाकार कथा-कृतियाँ रची गईं। अन्ना केरेनिना,वार एंड पीस (युद्ध और शांति), क्राइम एंड पनिशमेंट (अपराध और सज़ा), मदर (माँ) आदि उस युग की महान कालजयी औपन्यासिक रचनाएँ हैं। रूसी उपन्यास साहित्य सुविशाल फ़लक पर अपने समय के समूचे इतिहास को प्रस्तुत करती है। इन उपन्यासों की सबसे बड़ी विशेषता युगीन चेतना और इतिहास की करवटों को तत्कालीन समाज की व्याकुलताओं के साथ प्रस्तुत करना है। उपरोक्त वृहदाकार उपन्यासों में रूसी सामंती उच्चवर्ग की आलीशान इमारतों में पनप रही विलासी संस्कृति के बरक्स सर्वहारा वर्ग का उबलता हुआ आक्रोश व्यक्त हुआ है। यह आक्रोश जो धीरे-धीरे गृहयुद्ध और फिर एक भयानक विद्रोही क्रान्ति में परिवर्तित होकर रूसी राजनीतिक व्यवस्था को उलटकर रख देता है। 'ज़ारशाही' क्रूर, कुटिल अमानवीय निरंकुश सत्ता से रूसी समाज की मुक्ति की गाथाएँ इन उपन्यासों में चित्रित की गईं हैं। रूसी उपन्यासों में देश और जाति के पुनरुत्थान के लिए चिंतन की कलात्मक परंपरा निहित है। साहित्य की क्लासिक कृतियों को सिनेमा की प्रभावी विधा में परिवर्तित करने की परंपरा का विकास पश्चिम में बहुत पहले हो गया। हॉलीवुड के फिल्म निर्माताओं का इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान है। विश्व की प्रमुख महाकाव्यात्मक औपन्यासिक कृतियों पर विश्व की अनेक भाषाओं में फिल्में निर्मित हुई हैं। ऐसे उपन्यासों के फिल्मी रूपान्तरण विश्व भर में लोकप्रिय हुए हैं और आज भी इनके सिनेमाई संस्करण नई पीढ़ी के दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं। 

विश्व के महान उपन्यासकारों में टॉल्स्टाय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'काऊंट लेव निकोलाईविच टॉल्स्टाय' (9 सितंबर 1828 - 20 नवंबर 1910) साहित्य जगत में लेव टॉल्स्टाय या लियो टॉल्स्टाय के नाम से जाने जाते हैं। वे केवल एक कथाकार ही नहीं अपितु लेखक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और आध्यात्मिक चिंतक भी थे। अपने 82 वर्षों के सुदीर्घ जीवन काल में टॉल्स्टाय ने यथार्थवादी कथालेखन के साथ-साथ अपने धार्मिक एवं दार्शनिक चिंतन का प्रचार भी किया। टॉल्स्टाय ने परवर्ती जीवन काल में अपने धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों से रूसी समाज को प्रभावित किया था। उन्होंने ईसाई धर्म के सिद्धांतों को गंभीरता से ग्रहण किया और तदनुरूप जीवन में सदाचार एवं उच्च नैतिक गुणों और मूल्यों को आत्मसात करने का संदेश दिया। अपने स्वतंत्र एवं उन्मुक्त धार्मिक विचारों के प्रचार के लिए उन्हें उस समय के सम्राट (ज़ार) के आक्रोश का सामना करना पड़ा।

टॉल्स्टाय की औपन्यासिक कृतियों में वार एंड पीस (1869 - युद्ध और शांति) और अन्ना केरेनिना (1877) विश्व प्रसिद्ध हैं। दोनों ही उपन्यास वृहत्काय और विशाल फ़लक पर रचे गए तदयुगीन रूसी समाज की पतनोन्मुखता को दर्शाने वाले इतिहास और संस्कृति प्रधान उपन्यास हैं। 'अन्ना केरेनिना' संभ्रांत रूसी समाज में पनप रही घोर ह्रासोन्मुख नैतिक मूल्यों का चित्रण करती है तो 'वार एंड पीस' उपन्यास में नेपोलियन के आक्रमण की पृष्ठभूमि में रूस का सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष और आज़ादी के समर्पित बलिदान और देशभक्ति का चित्रण हुआ है। 

'अन्ना केरेनिना' उपन्यास एक कालजयी क्लासिक कृति है जो कि मानवीय संबंधों की जटिलता का नैतिक मूल्यों के संदर्भ में विश्लेषण करती है। स्त्री के शील और चरित्र के प्रति रूसी अभिजात वर्ग की रूढ़िबद्ध मानसिकता का चित्रण उपन्यास का केंद्रीय विषय है। स्त्री-पुरुष के संबंधों में नैतिकता का प्रश्न हर युग में साहित्य के केंद्र में रहा है। टॉलस्टाय से लेकर डी एच लॉरेंस तक, उपन्यासकारों ने स्त्री-पुरुष संबंधों के नैतिक-अनैतिक पक्ष को विवाह की सार्थकता और निरर्थकता के परिप्रेक्ष्य में विचार किया है। 

'अन्ना केरेनिना' उपन्यास का प्रकाशन सर्वप्रथम 1873 से 1877 तक धारावाहिक रूप में 'द रशियन मेसेंजर' नामक पत्रिका में हुआ था। समकालीन रूसी इतिहास, समाज और संस्कृति के व्यापक कलात्मक वर्णन के लिए यह उपन्यास टॉलस्टाय के जीवन काल में ही प्रसिद्ध हो गया। टॉलस्टाय के समकालीन रूसी काथाकार नोबोकोव ने इस कृति को 'दोषरहित चमत्कार' तथा विलियम फाकनर ने इसे 'सर्वकालिक श्रेष्ठ' उपन्यास कहा है। विश्व साहित्य में इस उपन्यास को 'सर्वकालिक महान' उपन्यास के रूप में स्वीकारा गया है। 

'अन्ना केरेनिना' एक सामंती घराने की अत्यंत सौंदर्यवती विवाहित स्त्री की मर्मांतक त्रासद गाथा है। उपन्यास की नायिका 'अन्ना केरेनिना' का जीवन, पति और प्रेमी के मध्य प्रेम की लालसा में झूलता रहता है। पति और प्रेमी के संग मिलकर वह अनबूझ प्रेम का त्रिकोणात्मक परिवेश बुनती है। वह जीवन पर्यंत अपने आभिजात्य और सामंती समाज के वैभव में व्यक्तिगत कामनाओं और नैतिक मूल्यों के बीच मानसिक अंतर्द्वंद्व को झेलते झेलते भयानक त्रासद अंत को प्राप्त होती है। टॉल्स्टाय ने व्यक्ति और समाज की नैतिकतावादी टकराहट तथा उन्नीसवीं सदी की रूसी उच्च्वर्गीय जीवन शैली में व्याप्त घोर विलासी प्रवृत्तियों के मध्य ह्रासोन्मुख मानवीय मूल्यों का इतिहास रचा है। 

अन्ना केरेनिना' उपन्यास के कथानक और नायिका 'अन्ना' का संबंध टॉलस्टाय के जीवन से जुड़ी एक घटना से है। टॉल्स्टाय के एक परिचित जमींदार की प्रेमिका 'यासेनकी' नामक रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी से कूदकर आत्महत्या कर लेती है। उस स्त्री का नाम 'अन्ना पीरोगोवा' था। वह एक खूबसूरत और आकर्षक महिला थी। वह आत्महत्या से पूर्व अपने पति के लिए एक पत्र लिखकर छोड़ जाती है जिसमें वह पति को अपना हत्यारा घोषित करती है और इस हत्या के बदले में उसके सुखी जीवन की कामना करती है। इस रेल हादसे के समय टॉल्स्टाय वहाँ उपस्थित था और उसने उस मृत युवती की मुखाकृति को देखा था। उस समय उसके मुख पर दर्द भरी रहस्यमय मुस्कान मौजूद थी। उस प्रसंग का टॉल्स्टाय पर इतना गहरा असर पड़ा कि वह मृत 'अन्ना पीरोगोवा' उसके कालजयी उपन्यास की नायिका बनकर संसार के सामने आ खड़ी हुई। टॉल्स्टाय की पत्नी के द्वारा उसकी डायरी में दर्ज तथ्यों के आधार पर इसकी पुष्टि होती है-

"कई दिनों तक अन्ना का भूत टॉल्स्टाय के सिर से उतरने को तैयार नहीं था। उस अपवित्र, प्रतारणा और भयावह हिंसात्मक मृत्यु की कल्पना ने उसे पछाड़ दिया था। उसने अन्ना को पहले तो एक कलंकित चरित्र वाली स्त्री के रूप में कल्पना की किन्तु धीरे-धीरे उसके मन में उस मृत महिला के प्रति कोमल संवेदना जागृत हुई और वह उस अन्ना के प्यार में फँसता चला गया।उसी प्रक्रिया में एक अलग और विलक्षण व्यक्तित्व का जन्म हुआ जो 'अन्ना केरेनिना' के रूप में प्रकट हुई। 

यह उपन्यास आठ खंडों और हजार पृष्ठों में रचित एक दीर्घकाय उपन्यास है जिसमें रूस का एक समूचा युग समाया हुआ है। अनेक अंतर्कथाओं के साथ यह उपन्यास रूस की तत्कालीन सामंती संस्कृति का संपूर्ण समाजशास्त्र है। इसमें कई अभिजात घरानों की कहानियाँ मौजूद हैं। इस उपन्यास में लेखक ने प्रेम और विवाह की समस्याएँ, विवाह और विवाहेतर प्रेम संबंधों में उलझे पात्रों के मनोविज्ञान को नैतिकता के संदर्भ में व्याख्यायित किया है।

इस उपन्यास की नायिका 'अन्ना आर्केडेवना केरेनिना' काउंट (जमींदार) अलेक्सी अलेक्ज़ेंड्रोविच केरेनिन की पत्नी है। अलेक्सी केरेनिन उम्र में अन्ना से बीस वर्ष बड़ा है। अलेक्सी केरेनिन, पत्नी अन्ना और आठ वर्ष की आयु के पुत्र सेर्योजा अलेक्सीविच केरिनीन (सेर्गे) के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में अपने सामंती परिवेश में वैभवपूर्ण जीवन बिताता है। 'काउंट अलेक्सी किरिलोविच व्रान्स्की' इस उपन्यास का नायक है जो कि आकर्षक व्यक्तित्व का धनी, सुंदर स्त्रियों के लिए सम्मोहक पेशे से फौजी (कर्नल) है। वह सेंट पीटर्सबर्ग के विलासी प्रीति-भोजों का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा युवतियों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। अन्ना और व्रान्स्की के प्रेम संबंधों के समानान्तर 'लेविन और किटी' के प्रेम और विवाह की अंतर्कथा भिन्न धरातल पर पनपती है। लेविन का चरित्र अन्ना के चरित्र के साथ-साथ पल्लवित होता है किन्तु दोनों में एक विशेष अंतर बना रहता है। ऐसा माना गया कि 'लेविन' के चरित्र में टॉल्स्टाय का व्यक्तित्व झलकता है। अन्ना, अलेक्सी और कर्नल व्रान्स्की का प्रेम त्रिकोण ही इस उपन्यास की मूल समस्या है जो कि पाठकों को गहराई से व्याकुल करता है।

अन्ना केरेनिना का कर्नल व्रान्स्की के साथ विवाहेतर प्रेम संबंध की जटिलता ही उपन्यास के कथानक का आधार है। अभिजात उच्चवर्ग की परंपरावादी वैवाहिक जीवन के बंधनों को तोड़कर अन्ना केरेनिना, व्रान्स्की के प्रेम जाल में न चाहते हुए भी फँसती जाती है। व्रान्स्की के व्यक्तित्व का चुम्बकीय सम्मोहन अन्ना केरेनिना को अपनी और खींचता चला जाता है जिसे प्रारम्भ में दृढ़तापूर्वक ठुकराकर भी वह हारकर व्रान्स्की के प्रेम में अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है। पति अलेक्सी केरेनिन और उसके अभिजात समाज की मर्यादाओं की अवहेलना करते हुए, पहले छिपकर और फिर उन्मुक्त रूप से वह व्रान्स्की से अपने संबंधों को पति अलेक्सी के सम्मुख स्वीकार करती है। व्रान्स्की और अन्ना का उन्मुक्त और उच्छृंखल प्रेम रूसी संभ्रांत समाज में खलबली मचा देता है। अन्ना, पति अलेक्सी और पुत्र सेर्गी के प्रति भी अपनी वफादारी कायम रखना चाहती है किन्तु वह व्रान्स्की के प्रेम पाश में इस तरह जकड़ी जाती है कि वह अंतर्द्वंद्व में पड़कर अपना सर्वनाश कर लेती है। अन्ना और व्रान्स्की उपन्यास के आरंभ में जब पहली बार मास्को रेल स्टेशन पर मिलते हैं तब रेल के नीचे दुर्घटनावश एक रेल मजदूर की मृत्यु हो जाती है। रेल की इस दुर्घटना के प्रति अन्ना के मन में विशेष प्रकार का भय समा जाता है। इस दुर्घटना और मृत्यु के वीभत्स दृश्य को अपने लिए अन्ना अशुभ मानती है।

अन्ना का वैवाहिक जीवन नीरसता से बोझिल है क्योंकि उसका पति अलेक्सी केरेनिन बेहद ठंडा और नीरस किस्म का प्रशासनिक अधिकारी है। उसे राजकार्य के प्रति निष्ठा और समर्पण के सिवाय अपनी तरुण पत्नी की आकांक्षाओं का लेश मात्र भी अनुमान नहीं होता। अन्ना के प्रति उपेक्षा का भाव उससे दूरी का कारण बन जाता है। 

कर्नल व्रान्स्की और अन्ना की भेंट एक प्रीति भोज में बॉल डांस के समय होती है। व्रान्स्की बॉल डांस के लिए अन्ना को आमंत्रित करता है जिसे अन्ना सहर्ष स्वीकार करती है। यहाँ व्रान्स्की का केवल एक स्पर्श अन्ना को उसके मदमाते प्रेम के आगोश में ले लेता है। यहाँ से अन्ना के दस वर्षों के वैवाहिक जीवन की दिशा बादल जाती है। उसे व्रान्स्की का स्पर्श और बढ़ता हुआ उत्साह उत्तेजित करता जाता है। व्रान्स्की और अन्ना मानसिक और शारीरिक रूप से एक दूसरे के करीब होते जाते हैं। पति अलेक्सी अन्ना के इस अनैतिक आचरण से क्षुब्ध हो उठता है। 

एक दिन अन्ना अपनी दस वर्षों की गृहस्थी, लाड़ला बेटा (सेर्गी), सब कुछ छोड़कर प्रियतम व्रान्स्की के घर चली जाती है। अन्ना का यह व्यवहार उच्चवर्गीय संभ्रांत स्त्रियों के उपहास और चर्चा का विषय बन जाता है। व्रान्स्की के इस तरह एक धनाढ्य विवाहित स्त्री के मोह में पड़कर अपनी मान मर्यादा को खो देने से उसके परिवार के लोग भी असन्तुष्ट हो जाते हैं। इधर अलेक्सी, अन्ना को तलाक नहीं देना चाहता। यह स्थिति अन्ना के लिए और भी अधिक जटिल और हास्यापाद हो जाती है। व्रान्स्की इस स्थिति में अन्ना का साथ निभाता है। अन्ना एक लड़की को जन्म देती है। पति के द्वारा तिरस्कृत होकर व्रान्स्की के साथ रहते रहते वह मानसिक और शारीरिक रूप से मृतप्राय हो जाती है। ऐसी स्थिति में वह पति से क्षमा याचना कर उसे मृत्यु के मुख से बचा लेने की गुहार करती है। अलेक्सी अपनी बीमार पत्नी से मिलने आता है। अलेक्सी, व्रान्स्की की बेबसी को देखकर भावुक हो उठता है। अन्ना का चरित्र इतना गूढ़ और सुकोमल है कि दोनों पुरुषों (एक पति और दूसरा प्रेमी) की आँखों से अन्ना के लिए आँसू बहने लगते हैं। अन्ना अपने प्रेमी व्रान्स्की का हाथ पति अलेक्सी के हाथों में देकर, वह अपने प्रेमी को क्षमा करने के लिए कहकर बेहोश हो जाती है। तीन दिनों तक वह उसी बेहोश अवस्था में पड़ी रहती है। अलेक्सी पत्नी को उस हालत में छोड़कर नहीं जाना चाहता और व्रान्स्की को क्षमा कर देता है। व्रान्स्की से हुई अन्ना की बेटी को वह साथ लेकर चला जाता है। अलेक्सी के हृदय की महानता और उदारता से व्रान्स्की लज्जित होता है। अलेक्सी के चरित्र की उदारता में व्रान्स्की अपना पतन महसूस करता है। इस क्षोभ भरी मानसिकता में व्रान्स्की आत्महत्या के प्रयास में स्वयं को गोली मार लेता है लेकिन निशाना चूक जाने से वह बच जाता है। व्रान्स्की के इस आत्मदान से अन्ना के मन में व्रान्स्की के लिए फिर से प्रेम जाग उठता है। अन्ना और व्रान्स्की के इस अटूट बंधन को देखकर अलेक्सी अन्ना को तलाक देने के लिए तैयार हो जाता है। अन्ना और व्रान्स्की अपने भावी सुखी जीवन के सपने देखने लगते हैं। वे दोनों इटली प्रवास के लिए निकल पड़ते हैं। अन्ना फिर बदलने लगती है उसे व्रान्स्की भी चाहिए किन्तु अलेक्सी से अब वह तलाक नहीं चाहती। पुत्र सेर्गी के प्रति उसकी ममता उसे बेचैन करती है। पति और पुत्र का विछोह भी वह नहीं सह सकती। वह उस विरह-व्यथा और टूटते संबंधों के दुःख को अपने उच्छृंखल आचरण से नियंत्रित नहीं कर पाती। इसीलिए वह व्रान्स्की के प्रेम में भी सुखी नहीं रह सकती। यही उसकी मनोवैज्ञानिक विवशता है। निरंतर अंतर्द्वंद्व से जूझती हुई अन्ना का जीवन एक अनिश्चित भविष्य के अंधकार में खो जाता है। उसकी अनिर्णय की मनोदशा उसे दयनीय बना देती है। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। उसके मन में आक्रोश और आत्मपीड़न का भाव जागने लगता है। व्रान्स्की भी उसके इस दोहरे द्वंद्वयुक्त व्यवहार का रहस्य नहीं समझ पाता। अतिशय भावावेश में पुत्र की याद से बेचैन अन्ना उसके जन्म दिन के अवसर पर अकस्मात पति के घर पहुँचकर पुत्र को गले लगा लेती है किन्तु इस अवांछित अनधिकृत घुसपैठ के लिए वह पति द्वारा अपमानित होकर द्वेष के साथ घर से बाहर निकल जाती है। 

उपन्यास का उत्तरार्ध अन्ना के जीवन के विध्वंस और विनाश की सिलसिलेवार घटनाओं से भरा पड़ा है। 

असुरक्षा, भय, अलगाव और अकेलापन अन्ना को उत्पीड़ित करने लगते हैं। वह व्रान्स्की से पल भर के लिए भी अलग नहीं होना चाहती। व्रान्स्की से क्षण भर दूरी से भी वह व्रान्स्की के प्रति शंकालु हो जाती है। रह-रहकर उसके मन में व्रान्स्की के अन्य स्त्रियों के साथ संबंधों की कल्पनाएँ उसे अशांत कर असमान्य मनोरोग का शिकार बना देती है। अन्ना अपने भीतर अतृप्ति और रिक्तता का अनुभव करने लगती है। अपने इर्द गिर्द के अन्य स्त्रियों का सुखी दांपत्य जीवन उसके लिए ईर्ष्या का कारण बनने लगता है। धीरे-धीरे अन्ना और व्रान्स्की के आत्मीय संबंधों में दरार पड़ने लगती है। व्रान्स्की की रोमांटिक और प्रभावशाली छवि से आक्रांत अन्ना उसके व्यवहार के प्रति सशंकित होकर उससे झगड़ने लगती है। व्रान्स्की भी अब अन्ना के इस व्यवहार से दुःखी हो जाता है। रूढ़िवादी पारंपरिक नैतिकतावादी रूसी समाज में व्रान्स्की की छवि धूमिल होती जाती है। अन्ना को पता चलता है कि व्रान्स्की की माँ अपने संबंधियों में एक राज-कन्या से उसका विवाह निश्चित करने का प्रयत्न कर रही है। इससे अन्ना और व्रान्स्की में ज़बर्दस्त मनमुटाव हो जाता है। अन्ना वास्तविकता से अलग हो जाती है। उसे सारा संसार षडयंत्रकारी, दुष्ट और विनाशकारी प्रतीत होता है। इन स्थितियों में व्रान्स्की को रेल स्टेशन पर हुई अन्ना से प्रथम मुलाक़ात याद आती है। इस संदर्भ में टॉल्स्टाय ने लिखा है - "उस पहली मुलाक़ात में वह रहस्यमयी, प्रफुल्लित, सुंदर और प्रेम करने वाली, खुद जीवन का आनंद लूटने वाली और दूसरों को भी खुश कर देने वाली लगी, परंतु अब उसकी जगह ईर्ष्या करने वाली, बदले की आग में जलने वाली अन्ना कोई दूसरी ही थी।"
 
उपन्यास के अंतिम अध्याय में परिवारों में उत्पन्न होने वाले विवाद और उनसे होने वाली जीवन की क्षति को टॉल्स्टाय ने अत्यंत सुंदर ढंग से चित्रित किया है। अन्ना अपने प्रेमी के प्रति प्रतिशोध की आग में जलने लगती है। वह प्रतिज्ञा करती है कि वह उससे बदला लेगी। अन्ना स्वयं से और इस संसार से नाराज़ होकर आखिर रेलगाड़ी के नीचे गिरकर आत्महत्या कर लेती है और अपने सारे दुखों से मुक्त हो जाती है। व्रान्स्की को पाठ पढ़ाने के लिए वह अपने जीवन को नष्ट कर देती है। आत्म-रति, अमर्यादित प्रेम की आकांक्षा, समाज में स्थापित नैतिक मूल्यों के प्रति विद्रोही आचरण, अनिश्चितता, अंतर्द्वंद्व और निराधार शंका -संदेहों का शिकार होकर, प्रेमी और पति के मध्य की खाई में 'अन्ना केरेनिना' हमेशा के लिए समा जाती है।

अंत में व्रान्स्की की माँ कहती है - "इस स्त्री की मृत्यु भी कितनी हीन, भयावह और घृणित थी। मरते समय भी वह सुख नहीं पा सकी। उसने दो पुरुषों को अपने जीवन में प्राप्त करना चाहा, उन्हें हमेशा के लिए दुःख देकर वह चली गई।"

'अन्ना केरेनिना' विश्व उपन्यास साहित्य की अद्वितीय क्लासिक कृति है। विगत 137 वर्षों से वह संसार भर के पाठकों को 'अन्ना' के प्रति गहन संवेदनात्मक अनुभूतियों से उद्वेलित करती रही है। टॉल्स्टाय ने इस उपन्यास में केवल नष्ट होते रूसी समाज का ही दर्शन नहीं कराया, बल्कि इसके साथ साथ विवाह की संस्था और उसके गुण दोषों की भी तीव्र आलोचना की है। उसके मतानुसार रूसी समाज के तीन स्तर दिखाई देते हैं। पहला पवित्र, नैतिकतावादी निर्धन समाज, दूसरा रूसी उद्योगपतियों का समाज और तीसरा सामंती, अभिजात और राजसी वंशानुगत समाज जो छद्म नैतिकता का आवरण ओढ़कर अपनी एक अलग चकाचौंध से भरी दुनिया बनाता है। 'अन्ना केरेनिना' प्रेम में आत्म-नाश और विध्वंस की गाथा है। इसमें असंख्य पात्र, अनेक कुलीन परिवार और दंपतियों के परस्पर वैवाहिक संबंध, रूस की कृषि व्यवस्था, किसानों की दुर्दशा जैसे अनेक सामयिक समस्याओं को लेखक ने अति विशाल फ़लक पर चित्रित किया है।

मूलत: रूसी भाषा में रचित टॉल्स्टाय के उपन्यास 'अन्ना केरेनिना' को विश्व की अनेकों भाषाओं में अनूदित किया गया। केवल अंग्रेजी में ही इसके एक दर्जन से ज्यादा अनुवाद उपलब्ध हैं। इसका अनुवाद भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है। इस उपन्यास को सिनेमा, बैले, ओपेरा, नाटक, और रेडियो नाटक के रूप में विश्व भर में रूपांतरित किया गया। सन् 1911 और 1914 में रूस में इस उपन्यास पर पहली बार फिल्में बनीं। 1915 में अमेरिका में पहली बार 'अन्ना केरेनिना' फिल्म अंग्रेजी में बनी। 1927 में हॉलीवुड द्वारा अन्ना केरेनिना उपन्यास को 'लव' नाम से मूक फिल्म में रूपांतरित किया, जिसमें अन्ना की भूमिका में उस समय की मशहूर अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो थीं। इस फिल्म को दुखांत और सुखांत दोनों संस्करणों में प्रदर्शित किया गया और दर्शकों की प्रतिक्रिया को परखा गया। इसी क्रम में हॉलीवुड और अन्य यूरोपीय देशों के निर्माताओं द्वारा 'अन्ना केरेनिना' उपन्यास पर 1911 से 2013 के बीच 16 फिल्में बनाई गईं। हॉलीवुड में उस दौर की सुविख्यात अभिनेत्रियों में 'अन्ना' के अभिनय के लिए होड़ लगी थी। ग्रेटा गार्बो और विवियन ली जैसी अभिनेत्रियों ने 'अन्ना केरेनिना' का अभिनय कर विश्व स्तर पर दर्शकों को मोहित किया। अन्ना की त्रासदी फिल्मी पर्दे पर देखकर लोगों ने आहें भरीं और इस फिल्म की याद बरसों बाद भी तक दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर छायी हुई है। इस फिल्म ने हर पीढ़ी के दर्शकों को प्रभावित किया और 'अन्ना' आज भी एक जीती जागती अभिशप्त स्त्री के रूप में जीवन के किसी मोड पर हर व्यक्ति को देखाई दे जाती है।

हॉलीवुड में 1927 के बाद 1935 में एक बार फिर ग्रेटा गार्बो' अन्ना केरेनिना (सवाक फिल्म) बनी जिसने विश्व सिनेमा में अपना विशेष स्थान अर्जित किया। इस तरह ग्रेटा गार्बो को दो बार एक ही नायिका की भूमिका में अभिनय करने का श्रेय हासिल हुआ। उन दिनों हॉलीवुड की फिल्मों में 'ग्रेटा गार्बो' की सुंदरता का जादू छाया हुआ था। 'गार्बो' का भावुक और संवेदनशील अभिनय अन्ना की त्रासदी को फिल्मी पर्दे पर जीवंत करने में अद्वितीय माना गया। वास्तव में 'गार्बो' का व्यक्तित्व भी अन्ना की तरह गूढ़ और रहस्यमय था। इसी कारण दो प्रेमियों के प्रेम में बंट जाने वाली अन्ना का चरित्र निभाने में ग्रेटा गार्बो को सहज सफलता हासिल हुई। उसी क्रम में 1948 में 'अन्ना केरेनिना' एक बार फिर एम जी एम स्टुडियो हॉलीवुड द्वारा बनाई गई जिसमें उस दौर की अभिनय साम्राज्ञी 'विवियन ली' ने अन्ना की त्रासदी को साकार किया। इससे पहले नौ वर्ष पूर्व 'विवियन ली' ने 'गॉन विथ द विंड' (1939) की नायिका 'स्कार्लेट ओहारा' के रूप में सिनेमा जगत को वशीभूत कर लिया था। वही 'विवियन ली' ने इस बार अन्ना केरेनिना के मानसिक द्वंद्व, विसंगतियों और पीड़ा को फिल्मी पर्दे पर उतारकर अभिनय जगत में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। विवियन ली की अन्ना केरेनिना आज भी उतनी ही लोकप्रिय और दर्शनीय है जो आज से 68 वर्ष पहले थी। इसके बाद अन्ना केरेनिना के कई फिल्मी संस्करण निरंतर बनते रहे। 1953 से 2013 तक रूस, ईजिप्ट, फ्रांस, स्पेन, ब्रिटेन, इटली आदि देशों में 'अन्ना केरेनिना' फिल्म और टी वी धारावाहिक के रूप में खूब मशहूर हुई। अन्ना केरेनिना हर दौर में प्रासंगिक बनी रही। 

1985 में साइमन लेंग्टन के निर्देशन में निर्मित, जैकलीन बिसेट और क्रिस्टोफर रीव अभिनीत टी वी फिल्म 'अन्ना केरेनिना' बहुचर्चित हुई। 1997 में पहली बार हॉलीवुड के निर्माताओं के द्वारा 'अन्ना केरेनिना' (सोफी मारसेयू और शान-बीन) फिल्म को पूरी तरह रूस के उन्हीं नगरों (मास्को, सेंट पीटर्सबर्ग) और स्थानों में फिल्माया गया जिनका चित्रण उपन्यास में टॉल्स्टाय ने किया है।

'अन्ना केरेनिना' उपन्यास के फिल्मी संस्करण श्वेत-श्याम और रंगीन, दोनों ही प्रारूपों में उपन्यास में लोकप्रिय हुए। उपन्यास में वर्णित मानवीय संवेदनाओं, परिवेशगत बारीकियों, तत्कालीन परिधान और वेशभूषा-गत विवरणों, उच्च वर्गीय अभिजात परंपराओं, रीति रिवाजों और पात्रों का फिल्मांकन भव्यता, यथार्थता और वास्तविकता का बोध कराता है। रूसी सामंती वातावरण और संभ्रांत वर्गों के भव्य पारंपरिक आयोजनों की फिल्मी प्रस्तुति प्रशंसनीय है। फिल्म के पर्दे पर यह एक कास्ट्यूम ड्रामा है।

फिल्म में अन्ना की व्रान्स्की से पहली मुलाक़ात का दृश्य, रूसी बर्फीली ठंड में मास्को रेल स्टेशन पर रूएंदार फर के ओवर कोट और फर के सुकोमल आवरण में लिपटी, रेल से उतरती हुई खूबसूरत अन्ना, भाप छोड़ता हुआ रेल का इंजन और उसका धुंधलाता धुआँ, सब कुछ मानो व्रान्स्की को मदहोश कर देने वाला दृश्य है। उसी क्षण एक रेल मजदूर की पटरी पर रेल के नीचे आ जाने से मृत्यु का हृदय विदारक दृश्य जिसे देखकर 'अन्ना' का भयभीत होकर विचलित हो जाना आदि दृश्य उपन्यास को शब्द-शब्द जीवित कर देते हैं। 19वीं सदी के रूसी उच्चवर्ग की अभिजात जीवन शैली, भारी भरकम पारंपरिक परिधानों में लिपटी रूसी स्त्रियों के प्रदर्शनकारी व्यवहार, प्रीति भोजों में आकर्षक पुरुषों को उच्चवर्ग की स्त्रियों द्वारा लुभाने के दृश्य फिल्मों में साकार हो उठे हैं। अन्ना और व्रान्स्की के रिश्तों को फिल्म में बहुत ही सावधानी और कलात्मकता के साथ चित्रित किया गया है। अन्ना और अलेक्सी, अन्ना और व्रान्स्की और साथ के अन्य पात्र जो मूल कथा से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हैं, इनका निर्वाह फिल्म में भिन्न भिन्न ढंग से किया गया है। अन्ना का रेलगाड़ी के सामने कूदकर आत्महत्या कर लेने का दृश्य दर्शकों को विषाद और उदासी से भर देता है। दर्शकों के मुँह से अनायास आह और हृदय में एक हूक सी उठती है, अन्ना का दर्द हर दर्शक अनुभव करता है। जिस तरह उपन्यास का संदेशात्मक पक्ष प्रबल है उसी तरह अन्ना केरेनिना फिल्म की सार्थकता भी शाश्वत है।'अन्ना केरेनिना' फिल्म, टॉल्स्टाय के असाधारण सृजन कौशल को सिद्ध करती है। अन्ना केरेनिना लियो टॉल्स्टाय की अमर प्रेम कथा है और उसी के बरक्स अन्ना केरेनिना एक विलक्षण और यादगार फिल्म है।
 

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