7889
काव्य साहित्य | कविता सुमित दहिया1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
वो आदमी एक दिन घर से चला गया
अपने युवा होने के क्रम को और विकसित करता हुआ
घटनाओं, वारदातों और संदेहों से बेख़बर
रेलगाड़ी के जनरल डिब्बे का लोकल पसीना सूँघता हुआ
अपनी प्रेमिका को ढूँढ़ते हुए पहुँचा हरित प्रदेश
हाँ भावन्तर योजना को आरंभ करने वाला प्रदेश
उस ताज़ा धार्मिक ने नवरात्रों के बाद
सीधा वहाँ के स्टेशन पर खाया
एक काला गुलाब जामुन और काली जलेबी
सुना है ये सिर्फ़ इसी प्रदेश में बनते हैं
और फिर उसके बाद एक हफ़्ते कुछ नहीं खाया
ख़ूब घूमा, भटका, दौड़ा, भागा
कितना अभागा
उसे प्रेमिका के पदचिन्हों के रूप में
ढूँढ़नी थी सलेटी रंग की एक इंडिका कार
नंबर 7889
इस हरित प्रदेश के एक बड़े से ख़ुशनुमा शहर में
बेड़ा घाट, बैलेंसिंग रॉक्स और धुआँधार झरने वाला शहर
आरक्षित समय का प्रत्येक पल
निरंतर खीसे से खिसकता हुआ
भटकता बाज़ार, सिनेमाघर, मॉल, मंदिर
और बसस्टैंड
ऊर्जा और धन दोनों शून्य
बीतते दिन, बढ़ती बेचैनी
और आख़िरकार मिल गयी वह गाड़ी
और उसमें थी प्रेमिका
किसी और के साथ
जानबूझकर हुई थी गुमशुदा
अलविदा॥
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