तस्वीरें
काव्य साहित्य | कविता सुमित दहिया15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
अपनी उम्र को विस्तार देने के क्रम में
मैंने एक घर में लगी देखी कुछ तस्वीरें
वे तस्वीरें कभी अपनी स्मृतियों का दोहराव बनातीं
कभी वे लगतीं अतीत की जर्जर शृंखला
तो कभी उनकी आँखों से बरस पड़ते आँसू
एक बच्चे का विलाप उन्हें प्रतिदिन करता बोझिल
सामने दरख़्त पार से झाँकती आवाज़ें
आजीवन उस घर को देतीं रही फ़तवा
कि बस करो बहुत हुआ
आस-पड़ोस के लोग सोना चाहते हैं
महल्ला अपने नाखूनों से खरोंच रहा है रात
मगर तस्वीरें दिखतीं बेबस और उदास
व्याकुल चीखती चिल्लाती हुईं
मानो कर रही हों स्वयं को परिपक्व
दिन पर दिन पास आने वाली
अकाल मृत्यु के लिए॥
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