सिसकियों की जगह
काव्य साहित्य | कविता सुमित दहिया15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
एक दिन आएगा
जब आपके पास नहीं बचेगी
सिसकियाँ लेने की जगह
और पहली दफ़ा ये दिन आने के बाद
यह दिन आएगा बार बार
क्योंकि उसे ज्ञात हो जायेगा आपका पता
कि आप भी हैं उन करोड़ों लोगों की तरह ही बेघर
जिनके पास कहने को है सब कुछ
पर असल में कुछ भी नहीं
आप तलाशना सिसकियों के लिए जगह रिश्तों में
प्रेमिका पत्नी भाई बहन दोस्त या पिता
यहाँ तक कि माँ की गोद भी मिलेगी मिलावटी
ये सब नहीं रहेगा कारगर
आप ढूँढ़ना जगह
किसी ख़ाली सड़क के किनारे
घर के पास वाले पार्क में
क्लब बार शोरशराबा पुराने पत्र किताबें या फिर अफ़ेयर
या घर के ही किसी कोने में तलाशना
लेकिन सब मिलेगा भरा हुआ और खोखला
किसी पहाड़ पर लिया गया किराए का कमरा
जहाँ से दिखती और बर्फ़
सामने ख़ूबसूरत पहाड़ों पर उतरती हुई
और आपके साथ पड़ी किराए की त्वचा भी
नाकारा साबित होगी आपके हिस्से का अँधेरा हटाने में
फिर अपने ख़ुद के शरीर में तलाशना
शायद मिले कोई जगह सिसकियों के लिए आरक्षित
अपनी आँखें उँगलियाँ माथा जीभ आँसू और ज़ेहन सब टटोलना
लेकिन वहाँ मिलेगी केवल याददाश्त
ज़्यादातर बुरी
अपमानित करने वाली आवाज़ों का समूह
असहनीय एकांत
ढेरों बेवजह देखी सुनी और पढ़ी गई चीज़ें
और अंतत मिलेगा एक निष्कर्ष
कि इसी याददाश्त से ही तो निर्मित होती है सिसकियाँ
जो उधेड़ देती हैं आपका वर्तमान और भविष्य
और जोकि पूरी कायनात होने के बाद भी है
बेघर और अनाभिव्यक्त॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं