बादल
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
धवल श्याम रक्ताभ गगन पर फैले बादल।
इंद्रधनुष के सुघड़ पटल सपनीले बादल॥
रिमझिम रिमझिम रैन दिवस (शत) रहो बरसते।
प्यासी धरती को पानी पहुँचाते बादल॥
गहन निविड़ कर तड़ित दिखा फिर गर्जन करते।
धरा नदी झीलों को जीवन देते बादल॥
प्रजनन करती धरती को रवि देख सके ना।
चादर एक उसे बन कर ढक देते बादल॥
दादुर ध्वनि, रिमझिम की लय और घोष गगन पर।
तृप्त धरा को अनहद नाद सुनाते बादल॥
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