शासन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
शासन बड़ा निराला है।
एक मकड़ी का जाला है॥
छोटे कीड़े फँसते हैं।
हाथी का रखवाला है॥
चाकू यहाँ सुरक्षित है।
पिसता पसली वाला है॥
भरे पेट तो भूखे हैं।
भूखा पेट निवाला है॥
डाकू मित्र सियासत के।
सब कुछ गड़बड़ झाला है॥
घना अन्धेरा दिन में है।
सारी रात उजाला है॥
घर में दफ़्तर चलते हैं।
और दफ़्तर में ताला है॥
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