बदनाम लड़की
काव्य साहित्य | कविता अनिरुद्ध सिंह सेंगर27 Aug 2016
मेरे मोहल्ले में रहती है
बदनाम लड़की
कुछ ख़ास लोगों को
परोसती है वह अपना गरम गोश्त
मोहल्ले के कुत्तों को नहीं देती लिफ़्ट
देह नुचवाने की
कुत्तों को बढ़ जाती है तकलीफ़
वे रात-रात भर भौंक कर मचाते हैं शोर
करते हैं बदनाम, उस लड़की को
घरों में दिवालों पर छिपकलियों की
बढ़ जाती है गश्त
मच्छर लगते हैं कुछ ज़्यादा पिन्नाने
सेक्स का कीड़ा कुत्तों को सोने नहीं देता
कुत्ते चौकन्ने रहते हैं
कुत्ते आतुर रहते हैं
नोचने बोटी उस बदनाम लड़की की
बदनाम लड़की
नहीं डालती घास गधों को
गधे घूम-घूम कर रेंकते हैं
बदनाम लड़की
निकल जाती है काम धंधे पर
जैसे देर रात शार्क निकल जाती है शिकार पर
मोहल्ले में लोट जाता है साँप।
मेरे मोहल्ले में रहती है
बदनाम लड़की
वह नहीं डरती किसी से
उसने देख रखे हैं चेहरे वर्दी वालों के
वह जान चुकी है असलियत बगुला भक्तों की
बदनाम लड़की अब नहीं डरती किसी से
बदनाम लड़की गर्दन उठाकर चलती है
मोहल्ले की औरतों में होने लगती है कानाफूसी
वे कोसती हैं बदनाम लड़की के भाग्य को
मोहल्ले की औरतें घृणा से देखती हैं
बदनाम लड़की को, उसके आचरण को
मोहल्ले की औरतें कभी चर्चा नहीं करतीं
उन लोगों की जो हैं
उस बदनाम लड़की के हैं हमबिस्तर
मोहल्ले की औरतें नहीं जानतीं
अकेली लड़की बदचलन नहीं होती।
मेरे मोहल्ले में रहती है
बदनाम लड़की
उसके चेहरे के पीछे भी है एक चेहरा
उसके सीने में भी एक दिल है धड़कता हुआ
उसकी आँखों में छिपी है एक कड़वी सच्चाई
मोहल्ले की औरतों को नहीं दिखती वह
मेरी पत्नी भी रखती है नज़र
मुझ पर चोरी छिपे
मोहल्ले की औरतों ने कान में फूँक रखा है मंत्र
‘बहिन जी इन मर्दों का क्या भरोसा’
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं