प्रतिबंध
काव्य साहित्य | कविता अनिरुद्ध सिंह सेंगर26 Dec 2015
उस लड़की के हँसने भर से
तुम्हें हो जाता है ऐतराज़
या छिपा रहता है
तुम्हारे अंदर घिनौना कीड़ा
जो नहीं देख सकता
एक लड़की को हँसते हुए
तुम्हें अपने ऊपर नहीं रहा भरोसा इसलिये
शक की सूई तुम्हें सोने नहीं देती
तुम्हारी कमज़ोरी कोई जाने
तुम लगा देते हो आरोप
खिलते फूलों पर,
भूल जाते हो
हँसना जीवन की मौलिकता है
तुम्हारा वश चले तो तुम लगा दो प्रतिबंध
समूची हँसी पर
तुम लगा देते हो ताले
सिल देते हो होंठ मासूम लड़कियों के
उनका चहकना-फुदकना तुमने छीन लिया
वे तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेंगी
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