हार मानूँगा नहीं
काव्य साहित्य | कविता अनिरुद्ध सिंह सेंगर17 Apr 2015
राह कितनी भी हो कठिन,
थककर बैठूँगा नहीं।
मर जाऊँगा, मिट जाऊँगा,
पर, हार मानूँगा नहीं।
चलना हो जिन्हें वे चलें साथ,
साहस हो जिनमें वे बढ़ें साथ।
रास्ता हो कितना भी दुर्गम,
पीछे मुड़कर देखूँगा नहीं।
हार मानूँगा नहीं।
संघर्षों का पथ मैंने चुना है,
गीत अपना मैंने गुना है।
नगद धर्म की बात करके,
उधार जीवन जिऊँगा नहीं।
हार मानूँगा नहीं।
सच पर कुहासा छाया है,
झूठ का बहुत बोल बाला है।
झूठ से मिले स्वर्ग भी तो,
सच का दामन छोड़ूँगा नहीं।
हार मानूँगा नहीं
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