गीत मेरे जब ख़्वाबों में
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत संजय श्रीवास्तव15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
गीत मेरे जब ख़्वाबों में आएँगे प्यार जताने को
आकर के मेरे ख़्वाबों में तुम सुर गीतों को दे जाना
गीत मेरे जब ख़्वाबों में आएँगे तुम्हें गुदगुदाने को
छूकर अपने होंठों से इनको रस प्रेम का घोल जाना
गीत मेरे जब ख़्वाबों में आएँगे प्यार जताने को
आकर के मेरे ख़्वाबों में तुम सुर गीतों को दे जाना
न जाने प्रियतम मेरा तुमसे किन जन्मों का है नाता
साथ तेरा जब तक ना हो तो मुझको कुछ नहीं भाता
गहराइयों से हृदय की अपने चाहा है तुमको ऐसे
गहराइयों से हृदय की अपने चाहा है तुमको ऐसे
बेसुध रहता हूँ तेरे प्रेम में लोग कहने लगे हैं दीवाना
गीत मेरे जब ख़्वाबों में आएँगे प्यार जताने को
आकर के मेरे ख़्वाबों में तुम सुर गीतों को दे जाना
दुख और विषाद में तुमने पल-पल साथ निभाया है
जीवन जीना किसको कहते हैं पग-पग पाठ पढ़ाया है
गहराइयों में हृदय की मेरे कुछ ऐसे रची-बसी हो तुम
गहराइयों में हृदय की मेरे कुछ ऐसे रची बसी हो तुम
गहरे समंदर में जैसे बंद सीप में मोती का मिल जाना
गीत मेरे जब ख़्वाबों में आएँगे प्यार जताने को
आकर के मेरे ख़्वाबों में तुम सुर गीतों को दे जाना
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
सांस्कृतिक आलेख
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं