क्या बात है . . .
शायरी | नज़्म संजय श्रीवास्तव1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
तेरी जुल्फ़ों की घनी छाँव मिले तो क्या बात है,
थकी रूह को तनिक ठहराव मिले तो क्या बात है।
तेरे होंठों से बिखरती हुई इस मुस्कान की तरह,
ज़िंदगी को नया एक रंग मिले तो क्या बात है।
तेरी आँखों से छलकती हुई वह लहर नूर की,
गहन अंधकार में उजाला बने तो क्या बात है।
तेरे रुख़्सार पर हँसी जैसे सुबह की पहली किरण,
हर ग़म को ख़ुशी में बदल दे तो क्या बात है।
क़दमों की आहट से महक उठता है संसार सारा
उजड़े गुलशन को भी बहार मिले तो क्या बात है।
तेरी बातों में छुपा है प्यार, समझ आता है मुझे,
सुनते-सुनते ही इकरार मिले तो क्या बात है।
मायने प्रेम के समझाया है तेरे साथ ने मुझको,
अब ये साथ उम्र भर बना रहे तो क्या बात है।
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