घोर कलयुग नज़र आता है
काव्य साहित्य | कविता अक्षय भंडारी1 Dec 2021 (अंक: 194, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
लगाव से बदलाव तक का
सफ़र कैसे बीत गया
वो याद आता है
बचपन का खेल हमें तड़पाता है
गुज़र गया कल याद आता है
स्कूल की टाट-पट्टी पर बैठते हैं
तो धरती माता से लगाव याद आता है
और शिक्षक का प्रभाव याद आता है
कल की सुबह इस तरह होती थी
कोयल की मीठी आवाज़ ओर
मन्दिर की घण्टी की आवाज़ से
शुभ प्रभात का होना याद आता है
लेकिन आज का आधुनिक युग मे
इस तरह दुष्परिणाम बढ़ गए कि
सुबह उठते ही आज भगवान के
दर्शन बदले मोबाइल स्क्रीन का दर्शन
याद आता है
इस मोबाइल के खेल में अच्छे चेहरों
में कई लुटेरे पैदा हो गए
हमें इस युग में
घोर कलयुग नज़र आता है।
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Karishma Rathod 2021/11/22 09:16 PM
Bahot khub kya baat hai