वो खेलते रहे और अपराध होता रहा
काव्य साहित्य | कविता अक्षय भंडारी1 Dec 2021 (अंक: 194, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मोबाइल के खेल में ये क्या हो गया
न जाने उसमें क्या है राज़ छुपा
जो मासूमियत पर भारी पड़ा
उसने खोला मोबाइल पर खेल
न जाने खेल की क्या है उसमें कला
अब तो दिन हो या रात बताओ
यह कैसा चढ़ गया नशा
अब तो मासूम चेहरे पर भी
क्या है राज़ छुपा वो बताने में
हिचकते रहे
ओर वो मासूम मोबाइल के खेल
फँस कर बर्बाद हो गए
इस खेल में बहुत छल है
वो खेलते रहे और अपराध होता रहा।
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