हम
काव्य साहित्य | कविता दीपक1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मैं हमेशा से
तुम और वह
दोनों को पसंद किया
और इन्हीं दोनों
कि स्मृतियों के तले
अपने आप को गुज़ार रहा हूँ
तुम और वह
कभी एक ना रहे ना हुए
पर मेरे लिए तुम दोनों एक थे
हम उसे त्रिभाषा के समान थे
जैसे हिंदी बांग्ला और अंग्रेज़ी रहते हैं
हम हमेशा एक दूसरे के अंदर रहे
पर कभी एक दूसरे में बस ना सके
तुम और मैं
अगर वह बने रहते
तो आज हम कहलाते
हर जंग को जीत जाते
और दुख को काट पाते
अलग होकर भी एक कहलाते
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