हे राम!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता हरिहर झा15 Apr 2019
हे राम! कहाँ आवश्यक है
कोई वचन निभाना
ख़्याली लड्डू दो वोटर को
काहे जंगल जंगल सड़ना
हर पिशाच से हो समझौता
काहे ख़ुद लफड़े में पड़ना
हाथ मिला कर राजनीति में
मक्खन खूब उड़ाना
पत्ता काटो हर कपीश का
दूध में मक्खी, सेवादार
कहाँ फँसे वनवासी दल में
अयोध्या के ओ राजकुमार
कैमरा हो, शबरी से मिल
चित्र केवल खिंचवाना
गले पड़े ना केवट कोई
रहने दो अपने दर्जे में
सत्ता रखो इंद्र वरुण पर,
नर्तकियाँ ख़ुद के कब्ज़े में
जाम इकट्ठा वोट बैंक में
भर भर चषक पिलाना
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