दिल का दर्द
काव्य साहित्य | कविता हरिहर झा4 Feb 2019
खोई-खोई उलझनों का कुछ तो राज है
क्या करें दिल का दर्द लाइलाज है
झांझर झमझम बजी सृष्टि का मूल
तारे ग्रह नक्षत्र चितवन की धूल
मेघ काले-छिद्र से नैन के काजल
युग-युगान्तर निकल गये कि जैसे पल
कल से बहते आँसुओं का समन्दर आज है
क्या करें दिल का दर्द लाइलाज है
राजकुल की मर्यादा सबको भाई
भोली सी प्रेम-लहर जा टकराई
क्या बला है! प्राण किसलिये अटक गये
प्रमुख जिन्हें राज-धर्म क्यों भटक गये
छोड़ दिया तख्त छोड़ दिया ताज है
क्या करें दिल का दर्द लाइलाज है
शरमा कर झुकी हुई नजर की हाला
चिन्गारी प्रेम की वियोग की ज्वाला
धधकते अंगार सा खून जब बहा
तड़पता सिसकता दिल मौन ही रहा
खुल कर रोने के लिये मोहताज है
क्या करें दिल का दर्द लाइलाज है
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