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मद्यपान है विष समान 

मदिरालय से मदिरा लेकर, एक व्यक्ति आया। 
पूरी बोतल गटक गया जब, नशा बहुत छाया। 
घर के बाहर धरती पर ही, लेट गया था वो। 
उसके बेटे ने जब देखा, मन में घबराया। 
 
घबराकर वह अपनी माँ को, बुला तुरंत लाया। 
पति का ऐसा हाल देखकर, माथा चकराया। 
लगी सोचने पत्नी उसकी, कौन उपाय करूँ। 
बेटा तुरत तोड़कर गोलक, नोट एक लाया। 
 
बोला बेटा अपनी माँ से, डॉक्टर बुलवाओ। 
चलना जहाँ कहीं भी हो तो, मुझको बतलाओ। 
नहीं बोलते पापा मेरे, हुआ इन्हें है क्या। 
माँ क्यों तुम चुपचाप खड़ी हो, मुझको समझाओ। 
 
बेटे की भोली बातों ने, प्रेम भाव घोला। 
अर्धचेतना में उठकर तब, पिता स्वयं बोला। 
तुमने मेरी आँख खोल दी, छोड़ूँगा मदिरा। 
ख़ुशियों के आँसू से उनका, भीग गया चोला। 
 
ऐसे ही परिवार अनेकों, दुखित हो रहे हैं। 
तन मन धन सब छलनी होता, बहुत रो रहे हैं। 
मद्यपान से कलह बहुत ही, सबके घर होती। 
जीवन में कुछ बचा नहीं है, सिर्फ़ ढो रहे हैं। 
 
आओ मिलकर मद्यपान पर, रोक लगाएँ हम। 
मिलकर के सहयोग करें कुछ, राह दिखाएँ हम। 
परहित से बढ़कर तो कोई, काज नहीं होता। 
मद्यपान है विष समान यह, बात बताएँ हम। 

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