मुझको गिरके ही तो उठना है
शायरी | ग़ज़ल ललित मोहन जोशी15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
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फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
मुझको गिरके ही तो उठना है
यानी तुम को क्या ही करना है
तमाम चेहरे जो दिखते हैं लोगो में
सो उन चेहरों को अब उतरना है
आज के दौर ए जहाँ का क्या कहना
बस यहाँ एक दूसरे से डरना है
जो जाति धर्म के लिए लड़ाते हैं
अब ऐसों को भी तो सुधारना हैं
लोगों के चेहरों पे लगे मुखौटों को
बस अब सबके सामने आना है
क्या तबदीर भला बुरे काम की हो
जो किया वही तो बस भरना है
भागते और दौड़ते हुए शहर को
मुझको अब इसको गाँव करना है
शहर गाँव के दरमियाँ की दूरी को
इसको मिटाकर अब एक करना है
मुश्किलों से गुज़र रहे हैं जो पल
उन पलों को भी अब के गुज़ारना है
दो चार पल की है ज़िंदगी यहाँ
फिर भी हमें एक साथ तो चलना है
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