तुम्हारी मशवरत
शायरी | नज़्म ललित मोहन जोशी15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
लो तुम्हारी मशवरत को भी मान लिया
सो मैंने तुम्हारे कहने से ख़ुद को बदल लिया
जिन हाथों की लकीरों पे नाम मेरा लिखा था
मैंने मिटा उन लकीरों को सरेआम दिया
मैंने ख़ुद को तबाह और बर्बाद कर दिया
यानी मैं ज़माने के खिलाफ़ चल दिया
अब मेरे साथ क्या होगा नहीं है मालूम मुझको
देखो अब जो करना था वो सो कर लिया
तेरे चेहरे की नूर हुआ करता था कभी मैं
अब तेरे चेहरे में वो नूर कहाँ जो मैं चल दिया
अब ज़माने में तेरा चलन और नाम हो ख़ूब
मैंने अपने ख़्यालों को मुकम्मल ग़ज़ल कर लिया
और मेरा हमेशा से सबके लिए भला सोचना
मुझको इक इसी बात ने ज़माने में बुरा कर दिया
ख़ुद सबके ही घर जाकर उनका हाल पूछा
और मुझको ही भरे बाज़ार में भला बुरा कह दिया
और यही होता है शायद इस जहाँ में ललित
सो बुरे को भीड़ तो भले को अकेला कर दिया
मशवरत=सोच-विचार, सलाह या राय का आदान-प्रदान
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