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ललित मोहन जोशी – मुक्तक – 001

मुक्तक


1.
इन पत्थरों से कब तलक सर पटका जाए यार
अब थोड़ा ख़ुद की खोज में भटका जाए यार
यहाँ सच्चे चेहरे नहीं भाते हैं लोगों को
यहाँ तो लोगों को बस झूठ फ़रेब भाए यार
2.
कब तलक किसी का कोई इंतज़ार करे यार
जो खोया ही नहीं है उसको कहाँ ढूँढ़े यार
जो पास होकर भी नहीं है पास मेरे
मैं उसका इंतज़ार कहाँ कैसे करूँ यार
3.
मैं अब दूर आसमाँ की सैर में हूँ
मैं इतनी आसानी से ना मिलूँगा। 
गर मेरा पता हो चाहते हो तुम
तो थोड़ा आसान बन के आना। 
4.
सुन मेरे ख़्वाबों की वो हुसना परी
तेरे ख़्वाबों में मेरा आशियां है कि नहीं
पूछकर ये ख़ुदसे से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में भोर है कि नहींं
5.
मेरे नसीब में लिखे हैं लाखों दर्द
मगर फिर भी ख़ुश रहना आता है मुझे
इतने आँसू छिपे हैं इन आँखों में
क्या ख़ुदा मुझ पर तरस नहीं आता है तुझे
6.
कशिश-ए-इश्क़ में सब मुमकिन होता है
बस एक दूसरे पर एतबार रखना होता है
गर जाना है मंज़िल की ऊँचाई पर
तो साथ एक दूसरे के रहना होता है
7.
परेशान हो के तुम यूँ अब भटकते जा रहे हो क्यों
तुम्हारी देख हालत को मेरा मन है परेशान क्योंं
सलीक़े इस तरीक़े से कोई भी हल ना निकलेगा
ग्रहों के जाल में यूँ उलझते जा रहे हो क्योंं
8.
भूल जाना है तुमको पुराना यहाँ
क्या पता है कल क्या होना यहाँ
तब मैं तुमसे ये कहता हूँ यहाँ
आज में तुमको जीना है यहाँ
9.
दुख की सब बदली टल जायेगी एक दिन
दुख के बादल यूँ छट जायेंगे एक दिन
करके उस ख़ुदा पर तू थोड़ा भरोसा
जंग में तू एक क़दम तो बढ़ा एक दिन
10.
होते जा रहे हैं दिनों दिन बड़े और समझदार
उतना ही माँ पापा को और जान पा रहे हैं
अब उनसे और लगाव बढ़ता जा रहा है
दुनिया में कुछ ठोकरें जो खाते जा रहे हैं

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टिप्पणियाँ

Mansi joshi 2023/09/02 09:57 PM

बहुत सुंदर

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