पसीने की कमाई
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. हरि जोशी4 Feb 2019
प्रतिदिन की तरह उस दिन भी,
कोई फाइल उन्होंने आगे नहीं बढ़ायी,
किन्तु पसीना बदन से टपक रहा था,
क्योंकि पंखे बेजान थे,
गर्मी में भी बिजली, दिन भर नहीं आयी,
कार्यालय से उठते हुए व्यक्त किया संतोष,
आज अपने भाग्य में थी, पसीने की कमाई।
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