अराजकता फैलाते हनुमानजी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. हरि जोशी8 Jan 2019
छोटी मोटी संस्थाओं में तो अध्यापक लोग हनुमानजी से उतने भयभीत नहीं रहते, किंतु बड़े महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में हनुमानजी ने जो आंतक और अराजकता फैला रखी है, उससे प्राध्यापक लोग ख़ासे चिंतित हैं। विशेष रूप से यह चिंता जाग्रत पवनपुत्र के कारण होती है। शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र-नेताओं का ज़ोर इस बात पर होता है कि परिसर में बीचों-बीच जाग्रत हनुमान की प्रतिमा स्थापित की जाए। इधर हनुमानजी की प्राण प्रतिष्ठा होती है, उधर प्राध्यापकों की जान मुसीबत में होने लगती है।
विशेषतः चुनाव के मौसम में और परीक्षा के दिनों में जाग्रत हनुमान, प्राध्यापकों के लिए कष्ट साध्य स्थिति पैदा कर देते हैं। असल में हनुमान ठहरे बेचारे बाल ब्रह्मचारी। जो भी हनुमान चालीसा का पाठ करता या उनकी पूजा अर्चना करता उन्हीं को "तथास्तु" का आशीर्वाद दे देते हैं। वह हिमालय पर रहकर, रामजी की भक्ति में लीन, आज की राजनीति और दुनिया से बेख़बर, तपस्वी, क्या जाने कि छात्रगण उनके आशीर्वाद का कैसा अनधिकृत लाभ उठाते हैं। उसके चिरंजीवी होने का लाभ भक्तों को लाभ मिलता रहता है। कभी-कभी सोचता हूँ जिस प्रकार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठवी एकादश तक भगवान गहरी निद्रा में होते हैं, उसी प्रकार चुनाव के पूर्व से, परीक्षा के अंत तक हनुमानजी को भी नींद आया करे ऐसा कोई यत्न किया जाना चाहिए। प्रत्येक बड़े शैक्षणिक संस्थान में जाग्रत हनुमानजी की प्रतिमा और उसी मंदिर से लगी हुई व्यायामशाला, अराजकता फैलाने में बहुत सक्रिय भूमिका निभाती हैं। मैं अपनी बात प्रमाण सहित कह रहा हूँ।
दृश्य क्रमांक एक - छात्रसंघ के चुनावों का बिगुल बज चुका है। मात्र दो ही नहीं अनेक राजनीतिक विचारधाराएँ एक साथ अखाड़े में उपस्थित हैं। सब पहलवानों ने अपने-अपने लंगोट घुमाना शुरू कर दिया है। प्रत्याशी किसी भी पंथ या धर्म के हों, हनुमान मंदिर में आशीर्वाद प्राप्त करने अवश्य जाते हैं। चुनाव जीतने की इच्छा किस प्रत्याशी की न होगी, वहीद मियाँ हों, आइज़ेक हो या शर्माजी, सभी हनुमानजी के सामने लाइन में लगे हुए पाए जाएँगे। ऐसे शक्तिपात के आलौकिक क्षणों में हनुमानजी पर सब अधिकार जताते हैं। अब हनुमानजी पक्षपात करके शर्माजी को ही तो वरदान नहीं देंगे। वैसे वह तो अंतर्यामी हैं, जो जानते हैं कि वहीद मियाँ, आइज़ेक या शर्मा को इस मुसीबत के समय में ही मेरी याद सताती है? चुनाव जीत गए कि विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री जिस तरह अपने मतदाता को पाँच साल तक भूले रहते हैं, मुझे भी एक दिन भी याद नहीं करेंगे। फिर जैसे ही चुनाव आए कि पुनः मेरी शरण में। मैं रामभक्त हनुमान न हो गया, एक सामान्य मतदाता रह गया। मान लिया कि वहीद और आइज़ेक इस बात का प्रदर्शन करने मेरे मंदिर में आते है कि सभी धर्मों में उनकी आस्था है और इसी भ्रम के चलते हिन्दू वोट भी उन्हें मिल जाते हैं, किंतु शर्मा भी तो इन पाँचों वर्षों में एक बार मेरी पूजा करने आया होता? आज चले आ रहे हैं, "हनुमानजी हमें शक्ति दो।" वैसे हनुमानजी सोचें कुछ भी, किंतु अपने भोले-भाले स्वभाव के वशीभूत सबको वरदान दे देते हैं। बाद में फिर होता है मल्लयुद्ध, सिर फुटौव्वल, लात, जूते, डंडे और न जाने क्या क्या? सभी तो हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त किए छात्र नेता होते हैं। बताइए इस अराजकता को फैलाने की ज़िम्मेदारी आप किस पर डालेंगे?
अब दृश्य क्रमांक दो - इसका सीन थोड़ा बड़ा है, शूटिंग और मारधाड़ के दृश्य कुछ लंबे चलते हैं। वर्ष भर जो छात्र गुरूजनों के चरणों में बैठकर विद्यार्जन करते हैं, वे ही इन दिनों अध्यापकों की कनपटी पर पिस्तौल लगाये रहते हैं।
मार्च-अप्रैल के महीनों में अचानक छात्रावासों से और प्राध्यापक आवासों से हनुमान चालीसा का पाठ सुबह चार बजे से होना शुरू हो जाता है। मंदिर में आवाज़ ही बढ़ जाती है, व्यायामशाला की मिट्टी में कई छात्र और शिक्षक रियाज़ करने पहुँचने लगते हैं। पुजारीजी तो चाहते हैं कि वर्ष भर ही परीक्षाएँ चलती रहें किंतु शिक्षक शीघ्रातिशीघ्र इस तूफ़ानी दौर के पार होना चाहते हैं। पुजारीजी को, मात्र इन दिनों बढ़िया दक्षिणा मिलती है। कई बार वे छात्रों के हित में अनुष्ठानादि भी कर लेते हैं, किंतु छात्र गण पुजारीजी को दक्षिणा देने के बाद जिस तरह प्राध्यपकों की प्रदक्षिणा करते हैं, वह चिंता का विषय हो जाता है। शिक्षकों को महामृत्युंजय का जाप करते रहने की सलाह पुजारीजन देते हैं। याने चोरों से कहें चोरी कर, साहूकार से कहें रखवाली कर। यह सब किसकी कृपा से? मैं धर्मप्राण उज्जैन के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाता था। कैंपस में बढ़िया हनुमान मंदिर है, वही समस्या की जड़ आज भी है। जब प्राध्यापकों ने देखा कि फरवरी माह से ही रशीद और भोला दोनों छात्र नेता हनुमानजी के दर्शन कर लाल लंगोट पहिनकर बगल की व्यायामशाला में कुश्ती का घंटे-घंटे रियाज़ करते हैं, तो उनकी चिंता बढ़ी। बाक़ायदा एक मीटिंग हुई। सबने एकमत से इब्राहीम साहब और प्रोफ़ेसर पांडे को अधिकृत कर दिया। छात्रनेता सुबह पाँच से छः तक कुश्ती का रियाज़ करें तो इब्राहीम साहब और पांडेजी सुबह साढ़े तीन बजे ही कड़कड़ाती ठंड में मलखंब करना, घोड़ा पछाड़ दाँव लगाना, कैंची लगाने का अभ्यास करें। प्राध्यापकों द्वारा की जाती इस पवनपुत्र आराधना का लाभ भी उस दिन परीक्षा में सचमुच देखने को मिला।
परीक्षा के पहले दिन तो रशीद और भोला ने खूब नक़ल की, बेचारे सींकिया प्रोफेसर गुप्ता को पूरे तीन घंटे भयभीत करते रहे, "हमें हाथ न लगाना, हनुमानजी का शक्तिपात हम दोनों को प्राप्त है, यदि किसी ने हाथ भी लगाया तो उसका हाथ जड़ से उखड़कर दूर जा गिरेगा।" गुप्ताजी ने परीक्षा के बाद यह संत्रास सबको बताया, पांडेजी और इब्राहीम साहब को भी। अब अगले दिन फिर परीक्षा शुरू हुई। दोनों छात्रों ने हनुमानजी की शक्ति का डर दिखाना शुरू कर दिया। इधर पांडेजी और इब्राहीम साहब को भी ऐसे दुर्लभ क्षणों के लिए तैयार कर लिया गया था। दो अलग-अलग खिड़कियों के पास बैठे हुए रशीद और भोला किताबों से, पर्चियों से बेरोक-टोक टीप रहे थे कि एक खिड़की से इब्राहीम साहब और दूसरी से पांडेजी मात्र लाल लंगोट पहिनकर सोंटा "गदानुमा" हाथ में लिये हुए बाहर की ओर धम्म से अंदर कूदे। पूरा हाल हतप्रद, यह क्या हुआ? रशीद और भोला भी लाल वस्त्रों में तो थे किंतु मात्र लाल लंगोट में नहीं। दोनों बार-बार कह रहे थे, "संस्था की वाटिका उजड़ जाएगी, हमें कोई भी न छेड़े।"
उस दिन इब्राहीम साहब और पांडेजी भी पूरी शक्ति हनुमानजी से प्राप्त करके आए थे, दोनों चिंघाड़े "रे वानरो, हनुमानजी का आज सुबह-सुबह ही हम दोनों को दर्शन और शक्तिपात हुआ है, उन्होंने ही आदेश दिया है कि "ग़लती से उन्होंने रशीद और भोला को देख भर लिया था, किंतु सुना है, उस कृपा दृष्टि का ये दोनों भरपूर दुरुपयोग कर रहे हैं।" हमें आज्ञा हुई है कि सोंटा मारते-मारते हम दोनों तब तक न रुकें जब तक ये दोनों छात्र नेता परिसर के बाहर न हो जाएँ।" और आव देखा न ताव प्राध्यापकों ने पहला सोंटा जैसे ही उनके टेबिल पर ज़ोर से मारा, दोनों भाग खड़े हुए। अब सीन यह था कि लाल वस्त्रधारी रशीद और भोला आगे-आगे और लाल लंगोटधारी इब्राहीम साहब और पांडेजी पीछे-पीछे। जब तक दोनों छात्र नेता परिसर से खदेड़ नहीं दिए गए, दोनों प्राफ़ेसर नहीं रुके। एक किलोमीटर तक यह रेस चलती रही। उज्जैन पूर्णतः धर्ममय हो गया। वैसे तो यह अनुशासन भी हनुमानजी की कृपा से ही स्थापित हुआ किंतु हनुमानजी जब तक आशीर्वाद देने में सुपात्र कुपात्र का भेद नहीं करेंगे, स्थितियाँ अराजक बनती ही रहेंगी।
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