भीख
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. हरि जोशी8 Jan 2019
लखमीचंद- यह पाँच वर्ष का लड़का भीख माँगता है? अभी से ही माता-पिता ने भीख माँगने की आदत डाल दी है? ऐसे भिखारियों को मैं कभी भीख नहीं देता।
अधीनस्थ कर्मचारी– जी सर, माँ बाप बड़े निर्दयी होंगे। वैसे भीख दे देकर हम लोगों ने भी इनकी आदत बिगाड़ रखी है।
लखमीचंद- इन्हें कोई भी डाँट देता है पर ये अपनी आदत से कभी बाज़ नहीं आते। फिर शुरू हो जाते हैं।
अधीनस्थ कर्मचारी- हाँ सर, इन लोगों की दुम हिलाने की आदत पड़ गई है, आसानी से जाती नहीं.?
लखमीचंद- भीख माँगना बुरा है, अपमानित होकर होकर पुनः माँगते रहना तो और भी बुरा।
अधीनस्थ कर्मचारी- बिलकुल ठीक सर, आपका विश्लेषण सही है।
लखमीचंद- आज मंत्रीजी का जन्म दिन है। अभी दस ही तो बजे हैं, चलो फूलों का बढ़िया हार ले चलें। संचालक के पद पर मेरी पदोन्नति हो जाये तो अच्छा।
अधीनस्थ कर्मचारी- हाँ सर यही उपयुक्त समय होता है कुछ माँगने का। बड़े आदमी हैं, ख़ुश होकर कुछ न कुछ तो दे ही देंगे।
लखमीचंद- लेकिन ऐसी बात करो तो कभी-कभी वह डाँट भी देते हैं।
अधीनस्थ कर्मचारी- तो क्या हुआ सर, पुराने मंत्री भी डाँट देते थे। लेकिन हमें निवेदन करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। वह दें या न दें हमें मांगना नहीं छोड़ना चाहिए।
लखमीचंद- उन्होंने तो मुझे पदोन्नति नहीं दी क्या पता वर्तमान मंत्री भी देते हैं या नहीं? लेकिन मेरे पिताजी कहा करते थे अपना काम करते रहना चाहिए, दें उनका भी भला, न दें उनका भी भला।
अधीनस्थ कर्मचारी- हाँ सर मेरे पिताजी की भी यही सीख थी, माँगते रहने में कोई बुराई नहीं है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
यात्रा-संस्मरण
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अराजकता फैलाते हनुमानजी
- एक शर्त भी जीत न पाया
- कार्यालयों की गति
- छोटे बच्चे - भारी बस्ते
- निन्दा-स्तुति का मज़ा, भगवतभक्ति में कहाँ
- बजट का हलवा
- भारत में यौन क्रांति का सूत्रपात
- रंग बदलती टोपियाँ
- लेखक के परिचय का सवाल
- वे वोट क्यों नहीं देते?
- सिर पर उनकी, हमारी नज़र, हा-लातों पर
- हमारी पार्टी ही देश को बचायेगी
- होली और राजनीति
लघुकथा
कविता-मुक्तक
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं