अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सूरीनाम में गाँधी

महात्मा गाँधी का प्रभाव भारत की सीमाओं को पार कर संपूर्ण विश्व में व्याप्त हुआ। दुनिया के हर मंच पर, जहाँ मानवता के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक भविष्य और पृथ्वी के संरक्षण पर बहस और चर्चा होती है, गाँधीजी अपने सरल उपदेशों के साथ सभी पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। दक्षिण अमेरिका के देश सूरीनाम पर भी बीसवीं शताब्दी के आरंभ से ही गाँधी का अनन्य प्रभाव रहा है।

भारत से लगभग पंद्रह हज़ार किलोमीटर दूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो की सड़क हेलिगनवेग व मागदेनस्त्रात के अति व्यस्त चौराहे पर स्थित है महात्मा गाँधी की मानवाकार प्रतिमा। जून 2018 में जब भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने सूरीनाम का दौरा किया तो अपने कार्यक्रमों का आरंभ उन्होंने इसी प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया। अपने भाषण में  उन्होंने कहा कि वहाँ के कार्यक्रमों का इससे पावन आरंभ और हो ही नहीं सकता था। उनके वक्तव्य का यह अंश पढ़कर मुझे लगा कि सूरीनाम की जनता के दिलों में उनके शब्द उसी तरह उतर गए होंगे जैसे उनके दिलों में गाँधी बसे हैं। 

महात्मा गाँधी न सिर्फ सूरीनाम के हिंदुस्तानी बंधुओं के दिल में वरन हर समूह, हर वर्ग के लोगों के दिल में विराजते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण वर्ष दर वर्ष 2 अक्तूबर को होने वाले कार्यक्रम में मिलता है जब भारत के राजदूतावास द्वारा आयोजित माल्यार्पण व भजन कार्यक्रम में विशाल जनसमूह उमड़ पड़ता है। तीन वर्ष मैं इस कार्यक्रम की प्रत्यक्ष साक्षी रही और मैंने देखा कि छोटे बच्चों से लेकर वृद्धजन तक गाँधी जी को पुष्प अर्पित करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। एक स्थानीय स्कूल एल्फामैक्स अकादमी तो इस आयोजन का अभिन्न अंग रहता ही है, चीनी, इंडोनेशियन व क्रियोल जनता भी उत्साह से भाग लेती है। 

ग़ौरतलब है कि गाँधीजी की यह प्रतिमा भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सौजन्य से वर्ष 1960 में सूरीनाम पहुँची औऱ इस स्थान पर इसकी स्थापना कमिटी ऑफ़ इंडियन इमिग्रेंट्स द्वारा कराई गई। यही समिति आज तक इस प्रतिमा की देखभाल व रख-रखाव कर रही है। समिति के विशेषज्ञ श्री बेन मित्रासिंह हैं। मूर्तिकार श्री एन.के. गोरेगावकर द्वारा तराशी यह प्रतिमा आज पारामारिबो का एक विशेष आकर्षण है। इसके अतिरिक्त महात्मा गाँधी की एक अर्ध-प्रतिमा राजधानी पारामारिबो से लगभग 200 किलोमीटर दूर निकेरी जिले में भी है, तथापि उसे कुछ सँभाल की आवश्यकता है।

सत्य और अहिंसा के इस अवतार से सूरीनाम दशकों से प्रभावित रहा है। गाँधी जी के छोटे से संदेश को उन्होंने बीजमंत्र की तरह गाँठ बाँधकर रखा है और पीढ़ी दर पीढ़ी उसे बीजवाक्य के रूप में ने वाली पीढ़ी को सौंपते आ रहे हैं। सूरीनाम से महात्मा गाँधी का पहला संपर्क वर्ष 1911 में जुड़ा जब वहाँ की एक समाजसेविका श्रीमती स्नैदर्स नें सूरीनाम में भारतीय श्रमिकों के  साथ हो रहे ख़राब व्यवहार के बारे में भारत को एक पत्र भेजा जिसे पढ़कर श्री मदन मोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, श्रीमती शेख महताब, कुमारी बेलियामा, श्री गोखले और श्री शौकत अली आदि ने नई दिल्ली में एक क्रांति आरंभ की, जिसके परिणामस्वरूप 20-03-1916 को लॉर्ड हार्डिंग मे एक क़ानून जारी किया और उसी समय से भारत से संविदा पर मज़दूरों को बाहर भेजा जाना बंद हुआ।

इसके बाद सीधे संपर्क के रूप में 1935 के पत्र का उल्लेख मिलता है जब डच गयाना के पं. भवानीभीख मिश्र ने 11 अक्तूबर 1935 को वर्धा में महात्मा गाँधी जी से भेंट की। सूरीनामवासियों के लिए दिए गए गाँधी जी के संदेश का उल्लेख पं. गयाप्रसाद, ज्योतिषी द्वारा लिखी पुस्तक पंडित भवानीभीख श्री मिश्र (जीवन परिचय) में है जिसका प्रकाशन, “अखिल भारतीय विक्रम परिषद काशी” द्वारा किया गया। सूरीनाम के प्रसिद्ध हिंदी सेवी स्व. पंडित हरिदेव सहतू जी ने इसका उल्लेख अपनी पुस्तक सूरीनाम में हिंदी भाषा और साहित्य के विकास का इतिहास में किया है औऱ उसे पुनः उद्धरित किया है। गाँधी जी का वह संदेश है – 

 

सूरीनाम के प्रवासी भारतीयों के नाम महात्मा गाँधी का संदेश

 

डच गयाना के पं. भवानीभीख मिश्र, श्री बनारसीदास चतुर्वेदी के साथ मुझसे मिले और  सूरीनाम के प्रवासी भाइयों के लिए मुझसे संदेश माँगा। मेरी आप लोगों से इतनी ही अर्ज है कि आप सब आपस में मिलकर रहें, जीवन की शुद्धता का खयाल रखें, परस्पर की बातचीत में हिंदी-हिंदुस्तानी भाषा का इस्तेमाल करें, हिंदी स्कूल और पुस्तकालय खोलें।

मगनबाड़ी, वर्धा – 11 अक्तूबर 1935         मो.क.गाँधी    

वास्तव में सूरीनाम के हिंदुस्तानी वंशजों के हृदय में जो भाव अपनी मातृभाषा के लिए है वह अनन्य है, हिंदी को बल देता है। वहाँ महात्मा गाँधी के नाम पर एक हिंदी पाठशाला भी हिंदी शिक्षण कार्य कर रही है। वर्ष 2018 में भारत सरकार ने राजदूतावास के माध्यम से इस पाठशाला के नवीकरण के लिए पाँच लाख रुपए का अनुदान दिया।

न सिर्फ़ भाषा में सूरीनाम के लोगों ने गाँधी को जीवन में भी आत्मसात किया है। इसका नवीनतम उदाहरण हैं वहाँ के राजनीतिक दल वी.एच.पी के अध्यक्ष श्रीमान चान संतोखी जो अपनी लड़ाई गाँधी को उदाहरण के रूप में रखकर लड़ना चाहते हैं। लगभग दो वर्ष पहले अध्यक्ष चान संतोखी ने गाँधी जयंती के अवसर पर महात्मा गाँधी के सम्मान में नीदरलैंड में दो सौ लोगों का नेतृत्व किया। उनका कहना है कि सत्य और अहिंसा का सिद्धांत सूरीनाम में वी.एच.पी के संघर्ष में सदा से एक मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है। 

उन्होंने गाँधी के सत्याग्रह दर्शन पर भी विचार किया और सभी से इन सिद्धांतों का सम्मान करने का आह्वान किया। वह कहते हैं “सत्याग्रह के सिद्धांत हमें स्वतंत्र करेंगे। वह हमेशा सच्चाई के लिए हैं और हम सभी को बाँधे रखते हैं”।

इस प्रकार हज़ारों मील दूर महात्मा गाँधी के शांति, प्रेम, सद्भाव, सत्‍य एवं अहिंसा मानव प्रेम एवं सर्वधर्म समभाव के दर्शन एवं विचार अपनी जड़ें बहुत मजबूती से जमा चुके हैं। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!! 
|

(बुद्ध का अभ्यास कहता है चरम तरीक़ों से बचें…

अणु
|

मेरे भीतर का अणु अब मुझे मिला है। भीतर…

अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
|

वैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान…

अपराजेय
|

  समाज सदियों से चली आती परंपरा के…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

व्यक्ति चित्र

कविता - क्षणिका

लघुकथा

गीत-नवगीत

स्मृति लेख

कहानी

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. नर्म फाहे