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क़िस्से वीर सुभाष के . . . 

आ रहे हैं सामने
पन्ने दबे इतिहास के
नायकों को भूलने के
कटु परिहास के . . . 
लाना अब उनको चाहिए
गुमनामियों से निकाल के
 
सिसकी वतन की सुन
घर-द्वार सब जो छोड़ दे
त्याग दे सुख तन के सारे
क्रांति का रुख़ मोड़ दे
दृढ़ अटल जिसके इरादे
ज्यों प्रचंड ज्वाल के
क़िस्से तो कहने चाहिए
उस भारती के लाल के। 
 
स्वप्न आँखों मेंं था जिसके
देश की आज़ादी का
एक विचार मन मेंं ले
संघर्ष पथ पर जो बढ़ा
बहुरूप धर पहुँचा वतन से
द्वार बर्लिन औ जापान के
क़िस्से तो कहने चाहिए
उस भारती के लाल के। 
 
जय हिंद का नारा दिया
आज़ादी का लहू से मोल किया
सुन पुकार जिसकी
नस-नस में शौर्य फड़क गया
आ गए थे मदद को फिर
देश सब संसार के
क़िस्से तो कहने चाहिए
उस भारती के लाल के। 
 
भू विदेशी पर पहुँच
फौज ऐसी की गठित
सुन दहाड़ जिसकी पल मेंं
कूच गोरे कर गए
हिल गए तने तार सारे
दुश्मनों के जाल के
क़िस्से तो कहने चाहिए
उस भारती के लाल के। 
 
खो गया एक दिन अचानक
किरीट हिन्द के भाल का
क्यों गया, कैसे गया
है रहस्य अब तक बना
लाना ही अब तो चाहिए
गुमनामियों से निकाल के
क़िस्से तो कहने चाहिए
उस भारती के लाल के। 

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