आधी सच्ची आधी झूठी
काव्य साहित्य | कविता भावना सक्सैना1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
आधी सच्ची आधी झूठी है ये दुनिया
है यह भी सच कि
तुम्हारा सच कुछ और है
मेरा कुछ और
सच यह भी कि
आँखों देखा व कानों सुना भी
होता है कभी ग़लत भी।
अमावस को दिखता नहीं
चाँद मगर होता है।
जमी झील की सतह पर
दिखता नहीं पानी
बर्फ़ के नीचे फिर भी
समय बीतने के इंतज़ार में रहता है।
ऊपर ही ऊपर होता है शांत
कई बार समंदर
भीतर उसके मगर
गरजता तूफ़ान होता है
और
भीतर के तूफ़ानों को शांत करना
सच है
कई बार बस में नहीं होता है।
मन के तूफ़ान मगर
मन के ही क़ाबिज़ हैं
किसी और का इन पर
अख़्तियार कहाँ होता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
व्यक्ति चित्र
कविता - क्षणिका
लघुकथा
गीत-नवगीत
स्मृति लेख
कहानी
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं