वह कविता है
काव्य साहित्य | कविता सुरेन्द्रनाथ तिवारी17 May 2012
वह कविता है
भावों की भाषा ना होती, होता कोई व्याकरण नहीं,
मन की उन्मन कविताओं के होते कोई संकलन नहीं।
उर-उदधि मथा जब जाता है,
भावों का ज्वार उमड़ता है,
उससे उत्त्पन्न वह सत्य, शुभम्,
सुन्दर अमृत, वह श्री-सुषमा, वे अप्सरियाँ,
वह नील-कंठ, भव, शिशु-शशिधर
ही कविता है।
वह कविता है।
नटवर नागर की मधु-मुरली,
नटवर-शंकर का प्रलय-नृत्य।
गोकुल की रास-भरी गलियाँ
कोठरी कंस के कारा की।
जीवन के स्वर वंशी में हैं,
पर पाँच्जन्य में भी तो हैं।
जीवन का यह अगणित विलोम
जिस लय में गूँजा करता है,
वह कविता है।
वह कविता है।
सूरज से कुछ सोना खरीद,
चन्दा से चाँदी ले उधार,
जो संध्या बुनती है तारे
हर रोज रात के आँचल पर,
उषा जो रंग रचाती है,
हर रोज नये उदयाचल पर।
मावस के अगणित चन्द्र-बिन्दु,
ऊषा का अनुपम अनुस्वार,
जिन शब्दों में ढल जाता हैं,
वह कविता है।
वह कविता है।
सीमा पर चौकस सैनिक के
मानस पर जब लहराती हैं,
पत्नी की प्यार भरी बाँहें, उसके आँचल का अल्हड़पन।
मुन्ने की तुतलाती बातें, उसके घुँघराले केश सघन।
जिस रोज डाक की छंटनी में
साहब कहते हैं-
"ले बेटा। यह तेरी चिट्ठी आई है।"
जो राग-रंग सजते मन में, जो जल तरंग बजते मन में।
आँचल छूने की चाह प्रबल,
पर बन्दूकों की मजबूरी।
बिरही मानस के पन्नों पर,
जो गजल स्वत: लिख जाती है,
जो छन्द स्वत:छितरा जाते।
वह कविता है।
वह भगत-सिंह का इन्कलाब, शुकदेव-राजगुरु की फाँसी,
रानी के घोड़े की टापें, जो अब भी सुनती है झांसी।
भूखी बेटी के आँसू लख, राणा का वह संताप गहन,
गोरी बन्दूकों के आगे, वह मँगल-पाण्डेय का गर्जन।
जब क्रांति-गीत बन जाता है,
वह कविता है, वह कविता है।
बेटा जब पहली बार खड़ा होता
आँचल को पकड़ पकड़,
उसकी हर्षाती आँखें लख
माँ की जब जुड़ती छाती है।
रक्ताभ अधर, पहली मेंहदी,
बिंदिया को पहली बार लगा,
खुद को दर्पण में देख
किशोरी बेटी जब मुस्काती है।
वह हर्ष-गुमान-मान माँ का,
वे पिता के बोझ भरे कंधे,
जिन स्वरों में मुखरित होते हैं,
वह कविता है, वह कविता है।
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