आगे बढ़ता चल
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र मिश्र 'भरत जी'15 Oct 2020
लक्ष्य मन में ठान
छोड़ दे मद-मान
कर्म पथ को जान
कर ज्ञान का सम्मान।
आगे बढ़ता चल . . .॥
रूढ़ियों को तोड़
रास्तों को मोड़
जीतने की होड़
सारे रिश्ते जोड़।
आगे बढ़ता चल . . .॥
कर ज़िंदगी से प्यार
यह तो नहीं है भार
संघर्ष कर मत हार
कर लक्ष्य को स्वीकार।
आगे बढ़ता चल . . ....॥
यह दुनिया की है रीत
कभी हार कभी जीत
कभी द्वेष कभी प्रीत
कभी ग्रीष्म कभी शीत।
आगे बढ़ता चल . . ....॥
सदा रखो देश का मान
नहीं धन का हो अभिमान
सदा धैर्य से लो काम
मानवता को पहचान।
आगे बढ़ता चल . . .॥
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