अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हम लौटें कल या न लौटें

[कारगिल युद्ध के समय की रचना]

ऐ हिमालय की सर्द हवाओ !
इक संदेश मेरा पहुँचा देना
है देश सुरक्षित इन हाथों में
                यह बात उन्हें बतला देना ।

वीरत्व सुना था लोरी में 
अमरत्व मिला था झोली में
ज़ोरावर ने जो रणघोष किये
वो गूँज रहे हर टोली में
अब लोहा लेना दुश्मन से
                यह बात उन्हें बतला देना ।

रग-रग में माँ का दूध मेरे
हर साँस में खेत की गन्ध मेरे
जन - जन का स्नेह है संग मेरे
बाँधी है जो हाथ में बहनों नें
राखी का वो धर्म है याद मुझे
                यह बात उन्हें बतला देना ।

वीर अर्जुन हैं आदर्श मेरे
उपदेश कृष्ण के संग मेरे
शत्रु कितने भी वार करे
माँ की ममता कवच बने
संग देश का आशीर्वाद मेरे
                यह बात उन्हें बतला देना ।

हम सीना ताने बढ़ते हैं
जय घोष देश की करते हैं
सब भूख प्यास भुला कर अब
हम सीमा रक्षा करते हैं
शत्रु के लिये महाकाल बनें
                यह बात उन्हें बतला देना ।

हम लौटें कल या न लौटें
न आँच तिरंगे पर आयेगी
इस मातृ भूमि के चरणों में
चाहे जान हमारी जायेगी
है अमरत्व का वरदान मुझे
                यह बात उन्हें बतला देना!
                यह बात उन्हें बतला देना!

 

{१ हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्
तस्मात् उतिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: }

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कविता

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं