अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

खेतों में बसती लक्ष्मी

शस्य-श्यामला ग्रामीण धरती, हरा-भरा संसार 
हरित क्रांति बनी सहेली, खेतों का अनुपम शृंगार  
खेतों में उपजे धान बाजरा, लक्ष्मी का शुभ्र निवास 
पेट भरा पूरी जनता का, ‘पी-एल ४८०’ बना इतिहास।
 
भारत देता दुनिया को चावल गेहूँ और अन्न विशेष  
किसान बन गए व्यापारी, कृषि विज्ञान का है उन्मेष 
‘एम बी ए’ की डिग्री लेकर युवा बने उन्नत किसान 
एक हाथ में मोबाइल, दूसरे से बीजारोपण    
पैर पड़े धरती के ऊपर, अंगुली चलती ‘गूगल’ पर 
कैसा है यह दृश्य अनोखा, नयी शताब्दी नया वरण।
 
जलवायु का रखते ज्ञान, कब सूखा कब वर्षा 
पौधों को कब दें खाद-उर्वरक, कब दें कुँए से पानी 
बाज़ार भाव का रखते ध्यान, मोबाइल है क़ाबिल 
उन्नत किसान लक्ष्मी के भाई, नयी-नयी चतुराई 
अन्नदाता हैं किसान, दुनिया देती उन्हें बधाई! 
 
खेतों में बसती हैं लक्ष्मी, हम कहते यही कहानी 
धन-धान्य से पूरित होंगे, हम होंगे अपने स्वामी! 
 
लाल मुरेठा, लाल वस्त्र, उनकी अपनी पहचान 
लाल रंग में दिल की लालिमा, प्रेम भरा आयाम 
स्वागत करे अतिथि का, यह है उनका संस्कार 
नमन योग्य तुम सदा रहोगे – हे भारत के किसान!  
हमें याद है “जय जवान, जय किसान” का नारा 
लेखनी मेरी धन्य हुई – लिखकर हाल तुम्हारा।
 
सरसों के पीले फूलों पर झूम रही ग्रामीण बाला 
नर-नारी मिलकर नृत्य करें, खेत बना रंगशाला!! 
 
(संकेत : PL 480, खाद्यान सहायता के लिए अमरीकी क़ानून) 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2021/08/12 10:52 AM

बहुत ख़ूब

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

एकांकी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं