नया सफ़र
काव्य साहित्य | कविता डॉ. वेदित कुमार धीरज1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
अब चलो एक नये सफ़र पर चलें
मन ही मंज़िल बने
तन ही राही रहे
साथ साँसों का हो
ना कोई और साथ हो
आत्म विश्वास हो
उम्मीद ख़ुद से रहे
योग ही साधना का विकल्प रहे
संतोष की नाव पर हम सवारी करें
मोल पैसे का तब ख़त्म हो जाएगा
आत्म से मुलाक़ात हो जायेगी
वो बनेगा हमसफ़र जब तेरा
बुद्ध तू और मन विवेकानंद हो जायेगा
मोह–पास सारे बिखर जायेंगे
सर्व विषमता तब समभाव हो जायेंगे
आत्म आनंद आनंदित हो जायेगा
मन को मंज़िल मिल जायेगी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
कविता
- अनवरत - क्रांति
- अम्मा
- कविता तुम मेरी राधा हो
- कैंपस छोड़ आया हूँ
- गंउआ
- द्वितीय सेमेस्टर
- नया सफ़र
- परितोषक-त्याग
- पलाश के पुष्प
- प्रथम सेमेस्टर
- मजबूरी के हाइवे
- युवा-दर्द के अपने सपने
- राहत
- लुढ़कती बूँदें
- वेदिका
- वेदी
- शब्द जो ख़रीदे नहीं जाते
- शहादत गीत
- शिवोहम
- सत्य को स्वीकार हार
- सहायक! चलना होगा
- सालगिरह
- सेमर के लाल फूल
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं