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शिवोहम

 

जिनका आदि-अंत नहीं, शशिधर महेश वो
भुजंग खर्प सर्प धरे इष्ट वो परमेश हैं 
नील वर्ण भुजंग धरे, रौद्र परमेश वो
त्रिलोचन ब्रह्माण्ड नायक, प्रभु वो महेश हैं
 
बंद नैत्रों से जिन्हें हाल सबके हैं पता 
विविध नियति माया प्रभा शरण जिनके हैं सदा
नीलकंठ सौम्य धरे आदि से अनंत से वो
रौद्र रूप धारण किये शंकर वो महाकाल हैं
 
शरण जिनको जग में नहीं, शरणागत महेश के
मनुज, पशु, भूत-प्रेत आदि के अनंत के 
दीन के दीनानाथ के सबके वो महेश हैं
 
हमको तो चाह तेरी सेवा में डटा रहूँ
छोड़ आवन मरण चक्र सेवा में खड़ा रहूँ 
सत्य ज्ञान दृष्टि कर दे, मरण-चक्र मुक्त कर दें 
वेदना को आस तेरी मूढ़ को विजय कर दें। 

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