कश्ती
शायरी | नज़्म डॉ. वेदित कुमार धीरज1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
याद जब भी आती है बचपन की
बहुत देर तक बारिश में नहाता हूँ मैं
मुझे बूँदों की छम छम में तुम्हारी पैंजनी की छाप लगती है
जब भी घर से निकलता हूँ यादें साथ चलती हैं
महक उठता है मिट्टी से मेरा मन
जैसे छू के गुज़रा हो तुम्हारा तन-मन
मैं बच्चों के काग़ज़ की कश्तियों का शुक्रगुज़ार हूँ
जिसने ज़िन्दा रखा है मेरा किरदार इन खिलौनों से
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