प्रथम सेमेस्टर
काव्य साहित्य | कविता डॉ. वेदित कुमार धीरज15 Mar 2023 (अंक: 225, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
तेरे ग़म से मैं शायद कुछ गुमसुम सा रहता हूँ
पर मैं ये नहीं कहता तुम्हें ही प्यार करता हूँ
तेरी चाहत मेरे दिल की धड़कन कब से बन बैठी
ना जाना मैं तू मेरे दिल की चैन कब से बन बैठी
मेरे इस हाल से वाक़िफ़ ना तू तब थी, ना तू अब है
तू कल भी बेख़बर ही थी तू अब भी बेख़बर ही है।
प्यार जो तेरा है मुझमें वो है मुझसे कह रहा
मैं ना होकर भी हूँ तेरा, तू ना मेरा सो सका।
जो गुमसुम सा रहने लगा हूँ
कोई मुझे बीमारी नहीं है
ग़म है तेरे बस जाने का
और कोई लाचारी नहीं है।
घट-घट तेरी राह तलाशें दिल मेरा अब हुआ दीवाना
कुछ समय तो और ठहर जा, जानता हूँ अब तू है बेगाना।
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