प्यार के गीत गाते रहो
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र मिश्र 'भरत जी'15 Sep 2020
प्यार के गीत गाते रहो
तुम सदा यूँ ही मुस्कुराते रहो।
ज़िंदगी की बड़ी है कठिन डगर,
ख़ुशियों के गीत सदा गुनगुनाते रहो।
हँसते-हँसते ये रास्ता कट जाएगा,
ग़म का बादल सदा यूँ ही छँट जाएगा।
प्रेम की डोर यूँ ही पकड़ कर चलो,
कुछ ना कुछ बोझ जीवन का बँट जाएगा।
उदासी न हो ना ही अफ़सोस हो,
मन में यूँ ही हमारे नया जोश हो।
प्रीत पलती रहे ज़िंदगी में सदा,
मन में अपने न कोई आक्रोश हो।
प्यार के गीत गाते रहो...॥
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