आत्महत्या
काव्य साहित्य | कविता मोतीलाल दास15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
देखना चाहता हूँ
ख़ासकर अपने भीतर
कि कितने आयामों में
क्रोध मिश्रित डर
कैसे अपना केंचुल छोड़
किसी आँच में ढलता है
चाहता हूँ देखना
वैसे ही अपने बाहर भी
कि कैसे कोई आसमाँ
उनके ड्राइंग रूम में क़ैद होते हैं
और हमारे चूल्हे की ताप
क्यों नहीं उन्हें भी झुलसा पाते हैं
आख़िर वो भी तो
इसी देश के नियम से संचालित होते हैं
देखना चाहता हूँ
उन सारी विसंगतियों को
अपने आदर्श के आईने में
किन्तु उनके ही दृश्य
आईने को अधिक चमकाता है क्यों
और हमारी नैतिकता
उसी आईने में धूमिल हो जाता है क्यों
आख़िर होता ही होगा
उन दो दृश्यों के बीच भी
संघर्षों के कई आयाम
परन्तु पराजित के साए
हमारी झोपड़ी में ही क्यों मँडराते हैं
और उनके महलों में
ज़रूरत से ज़्यादा रोशनी
हमारे अँधेरों को क्यों मुँह चिढ़ाते हैं
देखना ही चाहता हूँ
कि यह अमेल की परिस्थिति
आख़िर किसने तय की है
परन्तु पता नहीं क्यों
वो आईना मुझे मिल ही नहीं रहा है
आपसे मेरी विनती है
कृपया उस आईने का पता
कैसे भी हो
मुझे सूचित कर दें
ताकि मेरे किसान पिता की तरह
मेरे दूसरे किसान भाई
किसी पेड़ से लटके
अब और न मिले।
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