अमृत-जल
काव्य साहित्य | कविता वेद भूषण त्रिपाठी1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
स्नेहभाव से पुल्लकित अंबर
अमृतजल बरसाए।
पावनजल अमृतजल महिमा
जन-जन के मन भाए।
जन-जीवन में परिलक्षित हो
सृष्टि में गूँजे।
तालाब सरोवर कूप कुंड
नदियाँ सागर झील बनाएँ।
मानव कृषि रक्षा सुदृढ़ कर
जलप्लावन अनावृष्टि हटाएँ।
जल संरक्षण जल शुद्धि से
वातावरण शुद्ध बनाएँ।
कोई तरल विकल्प नहीं
जल जन-जीवन बन जाए।
प्यास से व्याकुल जल का प्यासा
ही जल का गुण गाए।
गला अगर तर करना है तो
जल ही प्यास मिटाए।
चंद्रजलायुक्त अन्य ग्रहों पर
जलान्वेषण कराएँ।
जल का मर्म सभी समझें
नादानी न अपनाएँ।
जल संकट को धूमिल कर
जन-जन की प्यास बुझाएँ।
क्षिति जल पावक गगन समीरा
पंचतत्व पूज्य बनाएँ।
पर्यावरण संरक्षित कर
सुख समृद्धि ऐश्वर्य बढ़ाएँ।
स्नेहभाव से पुल्लकित अंबर
अमृतजल बरसाए।
पावनजल अमृतजल महिमा
जन-जन के मन भाए।
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टिप्पणियाँ
डॉ उन्मेष मिश्र 2023/01/01 07:21 PM
बहुत सुंदर वर्णन
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Rajat 2023/05/04 07:19 PM
सुंदर काव्य रचना