नमामि गंगे
काव्य साहित्य | कविता वेद भूषण त्रिपाठी15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नमन है माता सुता भगीरथ
गोमुख से चलीं बढ़ीं पर्वत शृंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
श्रद्धानत हो मानव जग का
रहे स्वच्छ निर्मल जल गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
संकल्पित हो मानव जग का
अप्रदूषित जल हो गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
औषधीय जल मिले सभी को
सदा रहे अमृत-जल गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
आशीष ले मानव जग का
खिले सदा नित नई उमंगें
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
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टिप्पणियाँ
आशुतोष मिश 2022/11/01 08:56 PM
बहुत सुन्दर।
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डॉ उन्मेष मिश्र 2023/01/01 07:27 PM
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