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तीर्थराज प्रयाग

 

भारत माँ की पुण्य भूमि से
जन-जन का आह्वान। 
अमृतसम जल मिले सभी को
भारतीय संस्कृति महान। 
दिव्य-कुंभ की पावन भूमि 
जन-जन को हर्षाए। 
भक्त-जन के हृदय-कमल में
भाक्ति-भाव जगाए। 
सृष्टि जगत् के श्रद्धालु जन 
तीर्थराज प्रयाग आएँगे। 
ज्ञान, भक्ति, धर्म की त्रिवेणी में
डुबकी सभी लगाएँगे। 
भारतीय सामाजिक संस्कृतिक
पौराणिक परंपरा निभाएँगे। 
वैदिक मंत्रों का उच्चारण कर
सुख-मंगल वर्षाएँगे। 
मानवता के मूर्त सांस्कृतिक धरोहर
का वैश्विक सद्भाव बढ़ाएँगे। 
दिव्य-भव्य कुंभ की पावनता का 
पूर्ण आनंद मनाएँगे। 
त्रिवेणी संगम के पावन तट से
मानवीय कल्याण कराएँगे। 
दरश-परश, मज्जन कर जल का
पुण्य-पुंज खिलाएँगे। 
गंगा, यमुना, सरस्वती संगम की 
महिमा का गुण गाएँगे। 
मानस वेद पुराण उपनिषद्
कुंभ की कथा सुनाएँगे। 
सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी का 
यज्ञ संदेश फैलाएँगे। 
दाद्वस माधव प्रयाग परिक्रमा कर
आत्म-शुद्धि यश पाएँगे। 
सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी ने
प्रयागराज को नमन किया। 
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से 
जनजीवन संपन्न किया। 
त्रेता-युग में भारद्वाज ऋषिमुनि 
आश्रम रघुकुल आए। 
मुनीश्वर के आशीर्वाद से
रघुकुल धन्य बनाए। 
निषादराज की सखा-भक्ति ने
रघुराई को मुदित किया। 
स्नेहभाव से रघुराई ने
निषादराज को धन्य किया। 
पापनाशिनी गंगा माता
पतितों का दुःख हरती हैं। 
मोक्षदायिनी यमुना माता
मानव-तारण करतीं हैं। 
धन्य-धन्य जय माँ सरस्वती
विद्यापाणि कहलाईं। 
गंगा यमुना के साथ मिलीं
त्रिवेणी संगम लहराईं। 
संपूर्ण धरा से सुविज्ञ ऋषिमुनि
श्रेष्ठ संत जन आएँगे। 
‘राष्ट्र-धर्म’ का पाठ पढ़ाकर
‘धर्म-संसद’ बैठाएँगे। 
पर्यावरण, वन, जल-संरक्षण 
का संकल्प उठाएँगे। 
सर्वधर्म समभाव, वसुधैवकुटुंबकम्
का उद्घोष कराएँगे। 
भारतीय संस्कृति संरक्षित कर
वैश्विक उत्कर्ष बढ़ाएँगे। 
‘सरस्वती-कूप’ का दर्शन करके
धन्य-धन्य हो जाएँगे। 
स्वयं तरेगें स्नेह भाव से 
पितरों को भी तराएँगे। 
तीर्थराज प्रयाग का क्षत्रप
‘अक्ष्यवट’ कहलाता है। 
‘त्रिदेव’ सकल सृष्टि का
‘वृक्षराज’ से नाता है। 
बाल्य-रूप में विष्णु-देवता
‘अक्ष्यवट’ में शयन किए। 
वसुंधरा के प्रहरी बनकर
प्रयागराज को धन्य किए। 
‘वसुधैव-कुटुंबकम्’ भारतीय-
संस्कृति का वैश्विक आदर्श। 
संयुक्त राष्ट्र ‘यूनेस्को’ प्रयागराज
की भव्यता का प्रतिदर्श। 
आओ जन-जन स्नेह भाव से
संकल्पित हो जाएँ। 
शुचिता का संदेश उदित कर
जन-जन तक पहुँचाएँ। 
प्रयागराज के संगम तट पर
मंगलदीप जलाएँ। 
श्रद्धानत हो त्रिवेणी संगम का 
असीम पुण्य कमाएँ। 
तीर्थराज के शुभाशीष से
जीवन धन्य बनाएँ। 
भारत माँ की पुण्य भूमि से 
जन-जन का आह्वान। 
अमृतसम जल मिले सभी को
भारतीय संस्कृति महान। 

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