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आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 011

 

सीने में प्रचंड आग आज क्यों धधक रही है
पहाड़ सी हैं ये भुजाएँ आज क्यों फड़क रहीं हैं
लगता कोई वीर पुत्र शीश दान कर दिया है
इसलिए हैं मेघ आज बिजलियाँ कड़क रहीं हैं॥1॥
 
तलवार में अब भी धार वही केसरिये बाने
स्वाभिमान के लिए न कितने मिटे घराने
रजपूती है आन-बान की परिभाषा
जिसकी हो हिम्मत कहता हूँ डटे सामने॥2॥
 
राण में काल सा विकराल तुम गरजन करो
माँ भारती का वीर तुम निश्चय ही अर्चन करो
साहस को धर धीर तू अब शक्ति का वरदान ले
देश के कल्याण हित अब प्राण तुम अर्पण करो॥3॥

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