आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– विवेकानन्द
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
1.
इस धारा पर हे प्रभु आनंद हो जाए
चलें सत्मार्ग पर हर एक प्रेमानंद हो जाए
सब योग विद्या बल का दामन थाम लें यदि तो
सच कहता हूँ एक दिन सब विवेकानंद हो जाएँ॥
2.
रुचिर दिव्य सुगंध है जो सरोज में
एक नये अंदाज़, ऊर्जा, ओज में
जो शिकागो प्रांत को मोहित किया
सत्यता निज धर्मता की खोज में॥
3.
युवाओं का अधिनायक था
जन पीड़ा का वो गायक था
संन्यासी लिख गीत अमर हुआ
धर्म सनातन का नायक था॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता-मुक्तक
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 001
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 002
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 003
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 004
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 005
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 006
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 007
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 008
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 009
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 010
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 011
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 012
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 013
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– विवेकानन्द
कविता
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं