अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कर लेता मैं प्यार

 

जीवन में मेरे क्लेश यही है 
जन जन का संदेश यही है
चलता चाहे जिस पथ पर मैं 
कर लेता अगर प्यार प्रिय मेरे जीवन का संताप
तेरे ही बाँहों को तरसा, पाया कुछ ना बीती बरखा
ठगा हुआ जीवन ये मेरा, बचा हुआ जीवन ये मेरा
किसके दर-दर जाकर भटकूँ पाऊँ कहाँ पनाह
प्रिये यदि कर कर लेता मैं प्यार . . . 
  
इच्छाएँ मेरी कितनी प्रबल थीं कितनी थीं आशाएँ
दर्द भरा ज़ख़्मों का यह दिल है कैसे तुझे बताएँ
पग पग पर कंकड़ पत्थर चुन-चुन थे स्वयं हटाए
हिम्मत थी नहीं कर देता मैं प्यार का इज़हार
प्रिये यदि कर कर लेता मैं प्यार . . . 
 
तू रुठे मैं तुझे मनाता दूर कभी तेरे पास भी आता
हाथों को हाथों में लेकर होंठों को होंठों से छू कर
थोड़ा तू भी शर्मा जाती थोड़ा मैं भी शर्मा जाता
हम दोनों के बीच कहो ना क्या होता व्यापार
प्रिये यदि कर लेता मैं प्यार . . . 
 
आँखों से ही सब हो जाती छुप-छुपकर के बातें
प्रेम से तेरे गले जो लगता क्या होती हों रातें
पायल की रुनझुन बोली सुन
सुन चूड़ी कंगन की धुन सुन
चाँदनी रात बंसी के स्वर सुन
एक महका करता मेरा भी छोटा सा संसार
प्रिये यदि कर लेता मैं प्यार . . .
 
घुलमिल बातें जो तुमसे की थीं
ख़त चिट्ठीयाँ जो तुमको दी थीं
उस ख़त में मेरी लिखित शायरी
मेरे मोहब्बत की थी डायरी
तुम गर उसको लौटा देती
खुलता ना ये राज़ 
प्रिये यदि कर लेता मैं प्यार . . .
 
प्रिये यदि कर लेता मैं प्यार
रहता ना जीवन में मेरी कोई फिर संताप
प्रिये यदि कर लेता मैं प्यार
प्रिये यदि कर कर लेता मैं प्यार॥

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता-मुक्तक

कविता

किशोर हास्य व्यंग्य कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता - क्षणिका

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं