छाती शीतल होती है
काव्य साहित्य | कविता आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
वृद्ध माँ बाप को देकर देखो दो जून की रोटी
ख़ुशियाँ चेहरे पर दिखती हैं छाती शीतल होती
ये आनंद तुम्हें कहता है मन्दिर मस्जिद मत जाओ
सारे तीरथ हैं चरणों में आशीर्वाद इनसे पाओ
ख़ून को अपने जला के हमको कितने मेहनत से पाला है
हमको राजा मुन्ना कहकर देखो सदा दुलारा है
माँ का प्यार बड़ा है गहरा दुख में देख मुझे रोती है
माँ बाप की सेवा कर लो छाती शीतल होती है
ये व्यापार तुम्हारा पूरा कारोबार चलेगा ही
कभी मुनाफ़ा कभी तो घाटा ये बाज़ार चलेगा ही
समय निकालो बैठो संग में बातें चार करोगे कब
कुशल क्षेम पूछोगे कब सपना साकार करोगे कब
जब भी कोई कार्य करो शुभ पूछ लिया करो तुम भाई
ये तो काम सफल होगा ही कोई दुविधा क्या माई
कंकड़ पत्थर यह दुनिया है माँ-बाप तो मोती हैं
माँ-बाप की सेवा कर लो छाती शीतल होती है॥
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