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देश की पुकार

 

देश की पुकार में शत्रु की ललकार में
छोड़ मोह प्राण का सिंह सा दहाड़ दो
यदि चढ़े ये देश में दानवों के वेश में
काट शीश रुण्ड से धरा में वहीं गाड़ दो
 
तुम हो वीर पुत्र अब विलंब मत करो नहीं
स्वाभिमान हित सभी बेड़ियों को काट दो
यदि कहीं हो खाइयाँ रोक ले पथ तेरे. तो
शत्रु की अस्थियों को डाल कर तुम पाट दो
 
इन्हें यदि भरम अपने बाजू बल का है कहीं तो
युद्ध के मैदान में इनको अब पछाड़ दो
नस्ल इनकी भूले न कभी तुम्हारी चोट ये
ऐसा करो तुम मेरे वीर, नस्ल ही उजाड़ दो
 
देश की पुकार में शत्रु की ललकार में
छोड़ मोह प्राण का सिंह सा दहाड़ दो॥

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