अपना-पराया
कथा साहित्य | लघुकथा अमित राज ‘अमित’14 Nov 2014
ट्रिंगी-ट्रिंगी................. कॉलबेल बजी, रामू दौड़ते हुए दरवाज़ा खोला।
"कौन है रामू?" सविता ने पूछा।
"भिखारी है मालिक।"
"क्या माँग रहा है?"
"मालिकन! भूखा है, खाना माँग रहा है।"
"कोई खाना-वाना नहीं दरवाज़ा अच्छे से बन्द कर दो, यहाँ तो हर रोज़ कोई न कोई माँगने वाला आ ही मरता है, जैसे यहाँ खैरात बँट रही हो।"
तभी कुत्ते की ज़ोर से चीखने की आवाज़ सुनाई पड़ी।
सविता ने अपनापन जताते हुए कहा- "रामू देखो तो शेरू क्यों चिल्ला रहा है? शायद उसे भूख लगी होगी, उसके खाने का समय भी हो गया। तुम जाकर उसे ठोस और दूध दे दो, बेचारा बेज़ुबान जीव भूख के मारे तड़प रहा है।"
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ग़ज़ल
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं